मध्य प्रदेश की शान बाघ की मुश्किल में जान, छह माह में 25 की हुई मौत; जानें पिछले पांच सालों की स्थिति
टाइगर स्टेट मध्य प्रदेश में बाघों के संरक्षण के लिए कई जतन किए जा रहे हैं। पिछली गणना में इसके सुखद परिणाम भी सामने आए हैं, क्योंकि राज्य में बाघों की संख्या बढ़ी है। किंतु इस बीच चिंता की बात यह है कि प्रदेश में हर सप्ताह औसतन एक बाघ की मौत हो रही है। इस साल जनवरी से जून के छह माह में 25 बाघ मरे हैं। जो पिछले पांच वर्षों के वार्षिक मौत के आंकड़ों के औसत के बराबर हैं। पिछले पांच सालों के आंकड़ों को देखें तो करंट और आपसी संघर्ष में अधिक बाघ मारे गए।
बाघ प्रदेश की शान हैं लेकिन इनकी जान मुश्किल में है। इनकी आबादी बढ़ने से इनके लिए जंगल छोटा पड़ने लगा और जंगल से बाहर निकलते ही ये शिकारियों के जाल में फंस रहे हैं। पांच सालों में प्रदेश में 138 बाघों की मौत हुई है। जिसमें करंट से 15 बाघों की मौत हुई है,जबकि आपसी संघर्ष में 22 बाघ मारे गए हैं। शिकारियों के फंदे में फंसने से चार बाघों की मौत हुई है। जबकि जहरखुरानी से सात बाघ मरे हैं। बीमारी से छह बाघों की मौत हुई है। शेष की मौत को प्राकृतिक माना गया।
पांच सालों में बाघों की मौत की स्थिति
वर्ष संख्या
2016 30
2017 24
2018 28
2019 27
2020 29
2021 जून तक 25
मौत की बड़ी वजह और वन विभाग के प्रस्ताव
बिजली का करंट: जंगलों में विद्युत लाइन खुली होने से शिकारी वन्य प्राणियों के लिए करंट का जाल बिछाते हैं। जिसमें फंसकर बाघ मौत का शिकार हो रहे हैं। प्रस्ताव: पार्क क्षेत्र में ऐसी घटनाओं को कम करने के लिए इंसुलेटेड तार लगाने की योजना प्रस्तावित है। वर्ष 2012 में यह योजना बनाई गई है। जब तक यह स्वीकृति हुई, प्रस्ताव के बजट से बाहर हो गया। महंगाई बढ़ने से मामला अटका
आपसी लड़ाई: आबादी बढ़ने के साथ ही जंगल कम पड़ने लगे हैं। जिससे उनमें संघर्ष भी बढ़ा है। इसके लिए प्रबंधन और सरकार के पास कोई ठोस विकल्प नहीं है।
कान्हा नेशनस पार्क के डायरेक्टर एके सिंह ने बताया, बाघों में आपसी संघर्ष से मौतों की वजह उनकी संख्या बढ़ना है। उनके साथ रहवास का क्षेत्र भी बढ़ना चाहिए, पार्क का दायरा बढ़ेगा तभी बाघों का संरक्षण संभव होगा।