मनमोहन सिंह बोले: देश की अर्थव्यवस्था के लिए आगे की राह कठिन, प्राथमिकताएं दुरुस्त करे भारत

0

देश में पेट्रोल-डीजल के दाम अब तक के सबसे उच्चतम स्तर पर हैं। इसकी वजह से थोक महंगाई दर में भी वृद्धि हुई है। इसे लेकर विपक्ष सरकार पर हावी है। संसद में हंगामा काफी चल रहा है। वहीं आर्थिक मोर्चे पर भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने चिंता जताई है।

उन्होंने शुक्रवार को कहा कि देश के लिए आगे की राह 1991 के आर्थिक संकट से भी ज्यादा चुनौतीपूर्ण है और देश को सभी भारतीयों के लिए सम्मानजनक जीवन सुनिश्चित करने के लिए अपनी प्राथमिकताओं को फिर से जांचना होगा। आगे कहा कि देश में अर्थव्यवस्था के लिहाज से काफी मुश्किल वक्त आने वाला है।

मनमोहन सिंह 1991 के ऐतिहासिक बजट के 30 साल पूरा होने के मौके पर अपनी बात रख रहे थे। उन्होंने कोरोना महामारी के बाद पैदा हुए आर्थिक संकट पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि 1991 में 30 साल पहले, कांग्रेस पार्टी ने भारत की अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण सुधारों की शुरुआत की थी और देश की आर्थिक नीति के लिए एक नया मार्ग प्रशस्त किया था। पिछले तीन दशकों के दौरान विभिन्न सरकारों ने इस मार्ग का अनुसरण किया और देश की अर्थव्यवस्था तीन हजार अरब डॉलर की हो गई और यह दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है।

अपने बयान में मनमोहन सिंह ने कहा कि ये सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि इन 30 सालों में करीब 30 करोड़ भारतीय नागरिक गरीबी को मात दे चुके हैं लाखों करोड़ों नौकरियों के मौके बने हैं। सुधारों की प्रक्रिया आगे बढ़ने से स्वतंत्र उपक्रमों की भावना शुरू हुई जिसका परिणाम यह है कि भारत में कई विश्व स्तरीय कंपनियां अस्तित्व में आईं और भारत कई क्षेत्रों में वैश्विक ताकत बनकर उभरा।

उन्होंने कहा कि वह सौभाग्यशाली हैं कि उन्होंने कांग्रेस में कई साथियों के साथ मिलकर सुधारों की इस प्रक्रिया में भूमिका निभाई। इससे उनको काफी खुशी और गर्व की अनुभूति होती है। आगे कहा कि पिछले तीन दशकों में हमारे देश ने शानदार आर्थिक प्रगति की। लेकिन कोविड के कारण हुई तबाही और करोड़ों नौकरियां जाने से वह बहुत दुखी हैं।

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का कहना है कि 1991 के आर्थिक संकट के मुकाबले आज देश के सामने आगे की राह ज्यादा कठिन है और सभी भारतीयों का सम्मानजनक जीवन सुनिश्चित करने के लिए भारत को अपनी प्राथमिकताएं दुरुस्त करनी होंगी। आर्थिक उदारीकरण की 30वीं वर्षगांठ के अवसर पर एक बयान के जरिये सिंह ने आर्थिक सुधारों का उल्लेख करने से लेकर कोरोना महामारी के कारण देश में हुई तबाही, लाखों भारतीयों की मौत और आजीविका छिनने को लेकर गहरा दुख जताया है।

1991 में तत्कालीन वित्त मंत्री के रूप में दिए बजट भाषण को याद करते हुए सिंह ने कहा, तब मैंने विक्टर ह्यूगो (फ्रांसीसी कवि) के कथन का उल्लेख किया था कि धरती की कोई ताकत उस विचार को नहीं रोक सकती, जिसका समय आ गया है। पर तीन दशक बाद आज बतौर राष्ट्र हमें अमेरिकी कवि रॉबर्ट फ्रॉस्ट की कविता को याद करना चाहिए, ‘मुझे वादों को पूरा करने व मीलों का सफर तय करने के बाद ही आराम करना है। यह आनंद-उल्लास का नहीं बल्कि आत्मनिरीक्षण का समय है।’

तीन हजार अरब डॉलर की हुई अर्थव्यवस्था
सिंह के मुताबिक, 30 साल पहले कांग्रेस ने भारत की अर्थव्यवस्था के लिए अहम सुधारों की शुरुआत कर देश की आर्थिक नीति के लिए एक नया मार्ग प्रशस्त किया था। पिछले तीन दशकों के दौरान अलग-अलग सरकारों ने यह रास्ता अपनाकर देश की अर्थव्यवस्था तीन हजार अरब डॉलर तक पहुंचाया है। आज भारत दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक बन गया है।

वैश्विक ताकत बना भारत 
पूर्व पीएम का कहना है कि सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस दौरान करीब 30 करोड़ भारतीय गरीबी से बाहर निकले हैं और युवाओं को लाखों-करोड़ों नौकरियां मिली हैं। सुधारों की प्रक्रिया से स्वतंत्र उपक्रमों बढ़े, जिसके चलते भारत में कई विश्व स्तरीय कंपनियां बनीं और भारत कई क्षेत्रों में वैश्विक ताकत बनकर उभरा है।

समृद्धि की इच्छा से आगे बढ़े
सिंह ने बताया, 1991 में उदारीकरण की शुरुआत उस समय पैदा हुए आर्थिक संकट के कारण हुई थी लेकिन यह सिर्फ संकट प्रबंधन तक सीमित नहीं रहा। हमारी समृद्ध होने की इच्छा, अपनी क्षमताओं पर विश्वास और अर्थव्यवस्था पर सरकारी नियंत्रण छोड़ने के भरोसे की बुनियाद के कारण भारत में आर्थिक सुधारों की इमारत खड़ी हुई।

पीछे देखने पर होता है गर्व
सिंह ने कांग्रेस में कई साथियों के साथ मिलकर सुधारों की उस प्रक्रिया में भूमिका निभाने को लेकर खुद को सौभाग्यशाली बताया। उन्होंने कहा, मुझे पीछे मुड़कर देखने पर काफी खुशी और गर्व होता है कि बीते तीन दशकों में हमारे देश ने जबरदस्त आर्थिक तरक्की की है। कोरोना को लेकर कहा, महामारी में इतना नुकसान हुआ, जो नहीं होना चाहिए था। स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे सामाजिक क्षेत्र हमारी हमारी आर्थिक प्रगति में पिछड़ गए।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may have missed