कानूनों का कारगर क्रियान्वयन जरूरी

0

कुछ लोगों द्वारा अपने आर्थिक हितों की पूर्ति के लिए खाद्य पदार्थों में मिलावट द्वारा छोटे बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक सभी का स्वास्थ्य दांव पर लगा दिया गया है। आम आदमी से लेकर सरकार तक कोई भी इसे रोकने के लिए गंभीरता से प्रयास नहीं कर रहा है। भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) की रिपाद्रट बताती है कि देश में बेचे जाने वाले ७० प्रतिशत मिलावटी दूध एवं दूध से बने उत्पादों में डिटर्जंट पाउडरॉ यूरियाॉ स्टार्चॉ ग्लूकोजॉ सफेद पेंट आदि बेहद नुकसानदायक चीजों का प्रयोग किया जाता है। चीनी में चाक पाउडरॉ सरसों के तेल में अरजीमोन के बीजॉ मासालों में रासायनिक रंगों आदि की मिलावट होती है। दाल और चावल पर बनावटी रंगों से पॉलिश की जाती है। फलों और सब्जियों को ताजा दिखाने के लिए लेड और कॉपर सोल्युशन का छिडकाव एवं फूल गोभी को सफेद दिखाने के लिए सिल्वर नाइट्रेट जैसे खतरनाक रसायनों का प्रयोग किया जाता है। सबसे अधिक मिलावट खुले सामानों जैसे दूधॉ खाने के तेलॉ घीॉ चीनीॉ शहदॉ मसालोंॉ मिठाइयों आदि में होती है। मिलावट का यह कारोबार वैसे तो पूरे वर्ष ही चलता है परंतु त्योहारों के सीजन में तो यह ध्ंाधा और भी तेजी से फैलने लगता है। घ् देश में बाजार के बढईने के साथदृसाथ मिलावट का कारोबार भी बढईता जा रहा है। मूल खाद्य पदार्थों एवं मिलावटी खाद्य पदार्थों में पहचान न हो पाने के कारण उपभोक्ता खाद्य पदार्थों के रूप में प्रति दिन धीमे जहर का सेवन कर रहे हैं। मिलावटी खाद्य पदार्थों के प्रयोग से डायबिटीजॉ उच्च रक्तचापॉ =दय रोगॉ आहार तंत्र के रोगॉ कैंसर आदि से पीडिईत लोगों की संख्या में बहुत तेजी से वृद्वि हो रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत सरकार के लिए एडवायजरी जारी करके कहा था कि यदि मिलावटी दूध एवं उसके उत्पादों पर नियंत्रण नहीं किया गया तो २०२५ तक भारत के ८७ प्रतिशत लोग कैंसर की चपेट में आ जाएंगे। घ् महावपूर्ण प्रश्न यह है कि खाद्य वस्तुओं में मिलावट के इस खेल को रोकने में हम असमर्थ क्यों हैंघ् अनेक प्रकार के कडेई कानूनों के बाद भी यह आंकडईा बढईता ही क्यों जा रहा हैघ् लोगों के स्वास्थ्य के साथ होने वाले इस खिलवाडई पर सरकार खामोश क्यों हैघ् एफएसएसएआई की रिपोर्ट्स बताती हैं कि पिछले वर्षों में लिए गए सैंपलों में से एक तिहाई सैंपल फेल हो गए। यह इस बात का इशारा करते हैं कि मिलावट का खेल कितने बडईे पैमाने और कितने व्यापक स्तर पर चल रहा है। घ् खाद्य वस्तुओं में मिलावट को रोकने के लिए देश में नियम एवं कानूनों की कमी नहीं है परंतु जब तक केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा इसे गंभीरता से क्रियान्वित नहीं किया जाएगा तब तक कानून की कमियों का लाभ उठाकर दोषी बचते रहेंगे। खाद्य पदार्थों में मिलावट के दोषियों के लिए कडईी सजा का प्रावधान किया जाना चाहिए। भारत में कानून के भय से ही मिलावट की समस्या को कम किया जा सकता है। राज्य सरकारों द्वारा मिलावटी खाद्य पदार्थों को रोकने के लिए प्रत्येक ब्लॉक स्तर पर एक निगरानी सेल बनाया जाना चाहिए एवं उस सेल में नियुक्त अधिकारी को उस क्षेत्र विशेष के लिए जिम्मेदार भी बनाना होगा। टेस्टिंग लेबोरेट्री की संख्या में बढोतरी करने के साथ इनकी गुणवत्ता में भी वृद्वि के लिए शोध कार्यों पर अधिक व्यय किए जाने की आवश्यकता है जिससे टेस्टिंग में समय कम लगे एवं उसकी रिपोर्ट भी जल्दी आ सके। घ् जो लोग मिलावट के दोषी पाए जाएं उनके नाम एवं फोटो स्थानीय समाचार पत्रों में प्रकाशित होनी चाहिए जिससे उपभोक्ता उस दुकानदार का बहिष्कार कर सकें। उपभोक्ता को अधिक जागरूक एवं शिक्षित करने के लिए प्रत्येक व्यापारिक प्रतिष्ठान एवं रेस्तरां में बिकने वाले सामानों के मानक मापदंडों के ब्योरे की जानकारी के विवरण वाले बैनर लगे होने चाहिए जिस पर संबंधित अधिकारियों के पदनाम सहित मोबाइल नम्बर भी लिखे होने चाहिए जिससे उपभेक्ता अपनी शिकायत आसानी से लिखवा सकें।
उपभोक्ताओं की जागरूकता एवं सरकार के प्रयासों द्वारा ही मिलावटी खाद्य पदार्थों की समस्या से मुक्ति पाई जा सकती है। सरकार को अपने एजेंड़ा में इसे प्राथमिकता में रखना होगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may have missed