जवानों को खुदकुशी की राह पर ले जा रहा छुट्टी विवाद! सामान्य लीव के अलावा नहीं मिल रहा 100 दिन का अवकाश

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केंद्रीय अर्धसैनिक बलों में ‘सीएपीएफ’ जवान, छुट्टी विवाद के चलते आत्महत्या कर रहे हैं। समय पर अवकाश न मिल पाने से परेशान, जवान अपने सीनियर या साथियों पर फायर कर देते हैं। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 2019 के आखिर में सीएपीएफ जवानों को एक साल में 100 दिन की छु्ट्टी देने की घोषणा की थी। अब वह घोषणा चौथे साल में प्रवेश कर रही है, लेकिन अभी तक किसी भी अर्धसैनिक बल में सौ दिन दिन की छुट्टी योजना लागू नहीं हो सकी। इसका प्रचार ही अधिक होता रहा है। छुट्टी न मिलने के कारण जवानों को मानसिक प्रताड़ना से गुजरना पड़ता है। हैरानी की बात तो ये है कि जवानों को मौजूदा नियमों के तहत निर्धारित छुट्टियां भी नहीं मिल रहीं। सीएपीएफ जवानों को केवल दो तिहाई छुट्टियों से ही संतोष करना पड़ता है।

नरेश जाट चाहता था कि आईजी उससे बात करें

जोधपुर सीआरपीएफ प्रशिक्षण केंद्र में सोमवार को एक जवान ने छुट्टी एवं दूसरे विवाद के चलते खुद को गोली मार ली। जवान नरेश जाट, रविवार से ही घातक हथियार के साथ अपने क्वार्टर में बंद था। नरेश के साथ उसकी पत्नी एवं बेटी भी थी। उसने अपने पास मौजूद गन से फायर भी किया था। सूत्रों का कहना है कि छुट्टी को लेकर हुए विवाद में उसे डीआईजी से शिकायत थी। वह आईजी से बात करना चाहता था। हालांकि सुबह सीआरपीएफ आईजी विक्रम सहगल भी जोधपुर पहुंच गए थे। उन्होंने जवान के साथ फोन पर बातचीत की। आमने-सामने, उनकी बातचीत नहीं हो सकी। जवान ने अपने पिता को मिलने के लिए बुलाया। बाद में उसे भी क्वार्टर में नहीं आने दिया गया। नरेश जाट ने अपने घातक हथियार से खुद को गोली मार ली।

ड्यूटी के दबाव में छुट्टी न मिलना, एक खतरनाक स्थिति

बीएसएफ के पूर्व एडीजी संजीव कृष्ण सूद कहते हैं, कई वजह से परेशान, सीएपीएफ जवान खुद को गोली मार रहे हैं या अपने ही साथियों का खून बहा देते हैं। जवानों को समय पर छुट्टी न मिलना और उनकी सुनवाई ठीक तरह से न हो पाना, उक्त घटनाओं के लिए जिम्मेदार कारणों में से एक है। जवान पर ड्यूटी का भारी दबाव रहता है। दूसरी ओर, कमांडेंट भी जिम्मेदार होता है। जिस जगह पर ‘कंपनी’ को जाना होता है, वहां उसकी संख्या पूरी होनी चाहिए। ये बात ठीक है कि जवानों को छुट्टी अवश्य मिलनी चाहिए, लेकिन जब निर्धारित संख्या ही पूरी नहीं हो पा रही तो छुट्टी कैसे मिलेगी। अधिकारी और जवान, दोनों ही दबाव में होते हैं। इसका स्थायी हल निकाला जाना चाहिए। सौ दिन की छुट्टी की घोषणा, 2019 में हुई थी, लेकिन वह अभी तक लागू नहीं हो सकी है।

 

सीएपीएफ जवानों को सामान्य छुट्टी भी नहीं मिल पाती

सीआरपीएफ के पूर्व अधिकारी बताते हैं, एक कंपनी में 130 से 140 के बीच जवान होते हैं, लेकिन ड्यूटी चार्ट बताता है कि यह संख्या मुश्किल से 80 के आसपास सिमट जाती है। कुछ जवान छुट्टी पर होते हैं, कोई बीमार होता है। कुछ जवान बड़े अफसर के साथ अनौपचारिक तौर से अटैच रहते हैं। ड्राइवर, बाबू व दूसरे कर्मी भी कंपनी का हिस्सा माने जाते हैं। ऐसे में एक कंपनी को मुश्किल से 80 जवान ही मिल पाते हैं। कमांडेंट को हर सूरत में कंपनी की संख्या पूरी रखनी है। इसके लिए वह दूसरे जवानों की छुट्टी रद्द कर देता है। मौजूदा समय में जवानों को 60 आकस्मिक अवकाश छुट्टियां मिलती हैं। 15 अर्जित अवकाश होते हैं। 20 दिन का अर्धवैत्तनिक अवकाश मिलता है। हालांकि इसके बदले अगर कोई जवान, 10 दिन की मेडिकल लीव लेता है तो उसका पैसा नहीं कटेगा। परेशानी यह है कि जवान को ये सब छुट्टियां भी पूरी तरह नहीं मिल पाती। यही तनाव, जवानों को आत्महत्या की तरफ ले जाता है। कुछ अफसर को ‘डी’ ग्रुप में लीव देने का अधिकार नहीं है, यह कृपा पर आधारित है, इस पंक्ति का फायदा उठाते हैं। जवानों की स्वीकृत छुट्टी एन मौके पर रद्द कर दी जाती है। कभी तो जवान की छुट्टी स्वीकृत ही नहीं होती। दूसरी ओर, बल के डीजी कहते हैं कि जवानों को छुट्टी दो, लेकिन व्यवहार में इन आदेशों को पालन नहीं होता।

 

नहीं हुआ 100 दिन की छुट्टी देने की घोषणा पर अमल

कॉन्फेडरेशन ऑफ एक्स पैरामिलिट्री फोर्स मार्टियर्स वेलफेयर एसोसिएशन के वरिष्ठ पदाधिकारी रणबीर सिंह बताते हैं कि सीआरपीएफ एवं दूसरे बलों में जवानों को सौ दिन की छुट्टी देने की घोषणा पर अमल अभी तक नहीं हुआ है। लगातार ड्यूटी के चक्कर में जवान, लंबे समय तक अपने परिवार के पास नहीं जा पाते। जवानों को सौ दिन की छुट्टी कैसे मिलेगी, किसी भी यूनिट या बटालियन में पर्याप्त जवान नहीं हैं। बहुत सी जगहों पर जवानों को ऐसी ड्यूटी करनी पड़ रही है, जो तय मापदंडों में शामिल नहीं होती। बल मुख्यालय से आदेश तो आ जाते हैं, मगर निचले स्तर पर स्थिति कुछ और ही रहती है। उसे न तो अधिकारी समझना चाहता है और न ही जवान खुद के गुस्से पर काबू रख पाता है। आपस की कहासुनी जब अधिक बढ़ जाती है तो जवान अपने साथियों को मारने या खुद की जान लेने जैसा गलत कदम उठा लेते हैं।

सीएपीएफ: दस साल में सबसे ज्यादा ‘आत्महत्या’ के मामले

साल आत्महत्या के केस

2012 118

2013 113

2014 125

2015 108

2016 92

2017 125

2018 96

2019 129

2020 143

2021 156

 

नोट: सीएपीएफ के तहत आने वाले विभिन्न केंद्रीय सुरक्षा बलों में 2019 के दौरान, नौ जवान या अधिकारी साथी जवान के गुस्से का शिकार हुए थे। 2020 में आठ जवानों का खून बहा दिया गया। 2021 में भी आपसी कहासुनी ने आठ जवानों को मार डाला था। इन सबके पीछे ‘छुट्टी’ एक बड़ी वजह रही है।

 

सीआरपीएफ में काम नहीं आ सकी संस्कारशाला

सीआरपीएफ मुख्यालय द्वारा यह दावा किया गया था कि यूनिटों में जवानों की परेशानियों को जल्द से जल्द हल करने के प्रयास जारी हैं। उनकी काउंसलिंग की जा रही है, साथ ही बल की सभी यूनिटों पर ‘संस्कारशाला’ शुरू की गई है। सभी यूनिटों के अधिकारियों से कहा गया है कि वे जवानों की समस्याओं का त्वरित समाधान सुनिश्चित करें। अगर जवान के परिवार में कोई दिक्कत है तो उस संबंध में भी बातचीत की प्रक्रिया शुरू की जाए। जहां पर जवान का परिवार रहता है और वहां के प्रशासन का कोई मामला है तो उस बाबत जिला अधिकारी को पत्र लिखकर या बातचीत कर जवान की समस्या को हल कराया जाए। मुख्यालय के सूत्रों का कहना है कि ऐसे जवानों या अधिकारियों की सूची तैयार की जा रही है, जिन्हें किसी भी तरह की मानसिक समस्या या कोई दूसरी बीमारी है। जवान, अपनी बात कहने के लिए सामने आ रहे हैं। उनका ग़ुस्सा जानलेवा न हो, यह कोशिश जारी है। इसका मकसद था कि जवान किसी भी तरह की परेशानी में आत्महत्या जैसा कदम न उठाएं। अगर वह गुस्से में है तो अपने साथियों पर फायरिंग न करे। वह ‘सीओ’ या दूसरे अधिकारी को अपनी परेशानी बता सकता है।

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