साइबर लुटेरे- 100 के रुपये के फर्जी सिम से कर रहे लाखों-करोड़ों रुपये की साइबर लूट

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 इस साल 27 मई को मुझे एक निजी बैंक के कस्टमर केयर से फोन आया। मेरे क्रेडिट कार्ड पर सरचार्ज का हवाला देकर जाल में फंसाया गया। 28 मई को मेरे पास कस्टमर केयर से फिर फोन आया और क्रेडिट कार्ड ब्लॉक करने के नाम पर में 10 रुपये काटे गए। बाद में उसी दिन शाम 4 बजे मेरे अकाउंट से 45450 रुपये उड़ गए। नई दिल्ली के आशुतोष सिंह ने अपने साथ हुए साइबर फ्रॉड को बयां किया है।

वहीं, मेरठ के रहने वाले बृज मोहन कौशिक का आरोप है कि एक जालसाज ने ट्विटर का इस्तेमाल कर 50 करोड़ की ठगी कर डाली। ट्विटर पर एक फर्जी नाम से एक वेरिफाइड अकाउंट बनाया गया। देसी सोशल मीडिया प्लेटफार्म के लॉन्च का हवाला देकर निवेश की स्कीम लॉन्च की। 600 फीसदी रिटर्न का वादा किया। वहीं कई लोगों को आधे दाम पर आईफोन देने का वादा किया गया। इस तरह लोगों ने भरोसा कर अपनी जमा पूंजी गंवा दी। करीब 18 लोगों ने साइबर कंप्लेन दर्ज कराई है। बृज मोहन ने बताया कि उनसे भी सवा लाख की ठगी हुई है। वहीं एक व्यक्ति से 50 लाख की ठगी का आरोप है। ये साइबर फ्रॉड के सिर्फ 2 उदाहरण हैं, जिसमें लोगों ने चंद मिनटों में अपनी कमाई गंवा दी। भारत में हर दिन सैकड़ों लोग ऐसी ठगी के शिकार हो रहे हैं।

बैंक अकाउंट नंबर और सिम कार्ड से सबसे अधिक ठगी

साइबर एक्सपर्ट अमित दुबे बताते हैं कि बेहद आर्गनाइज्ड तरीके से सब कुछ मुहैया कराया जा रहा। साइबर फ्रॉड करने वाले एक सिम कार्ड को एक हफ्ते में बदल भी लेते हैं। कुछ महीने पहले ओडिशा में 16000 प्री एक्टिवेटेड सिम कार्ड जब्त किये, जबकि लोगों को पता ही नहीं था कि उनके नाम पर सिम कार्ड जारी किए गए हैं। बाहर के देशों में सिम कार्ड लेना और बैंक अकाउंट खोलना एक चैलेंज है।

हमारे देश में गांव में क्या होता है कि लोग स्टॉल लगा लेते हैं कि सरकार की सब्सिडी मिल रही है 100-200 रुपये की। गांव वाले आधार लेकर पहुंच जाते हैं। फिंगरप्रिंट से इन्हीं लोगों के नाम सिम कार्ड जारी हो जाता है और अकाउंट खुल जाता है और उनको पता ही नहीं होता।

पहले एक दो छिटपुट लोग ऐसे होते थे, जो कि यह फ्रॉड करते थे कहीं -कहीं। लेकिन अब कई लोग इसमें शामिल होते हैं, जो इन लोगों को प्रोटेक्ट भी करते हैं, गलत तरीके से सिम कार्ड मुहैया कराते हैं, लोगों के अकाउंट की डिटेल देते हैं।

साइबर एक्सपर्ट अमित दुबे ने बताया है कि किसी भी क्रिमिनल को साइबर फ्रॉड करने के लिए दो चीजें चाहिए सिम कार्ड और बैंक अकाउंट नंबर। ये दोनों बगैर केवाईसी के नहीं होता। लेकिन जांच में पता लगता है कि सिम कार्ड ओडिशा के किसी किसान के नाम पर है तो बैंक अकाउंट मजदूर के नाम पर।

साइबर एक्सपर्ट अमित दुबे कहते हैं, मैंने खुद एक क्रिमिनल से बात की उसने कहा कि 1 दिन में एक से डेढ़ लाख रुपये कमा लेता है तो जरा सोचिए यह कितना बड़ा रैकेट चल रहा है।

ऐसे बनता है गिरोह

गिरोह के सदस्य ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं होते हैं, लेकिन फिर भी ये तकनीकी तौर पर माहिर होते हैं। आठवीं पास अपराधी भी किसी इंजीनियर की तरह सॉफ्टवेयर की महारत रखते हैं। यह सब कुछ होता है ट्रेनिंग के जरिए। सॉफ्टवेयर के अलावा इन्हें एआई, आईओटी की भी जानकारी दी जाती है।

कैसे भाषा सीखते हैं

भाषा सिखाने के लिए स्पीकिंग कोर्स चलाते हैं। जामताड़ा गैंग ने यूपी, मध्य प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान जैसे राज्यों में अपने मॉड्यूल बनाए। स्पष्ट और अच्छी हिंदी-अंग्रेजी बोलने वालों को यह काम सौंपा जाता है। वहीं, रीजनल भाषा के लिए अलग से कोर्स चलते हैं-जैसे हरियाणवी, गुजराती। बच्चों को लड़कियों की आवाज में बात करने की ट्रेनिंग दी जाती है।

पर्सनैलिटी डेवलपमेंट

पर्सनैलिटी डेवलपमेंट के कोर्स करते हैं ये अपराधी, ताकि फर्जीवाड़ा करते समय कॉन्फिडेंस की कमी के कारण पकड़े न जाएं।

फिशिंग की ट्रेनिंग

एटीएम कार्ड का पिन नंबर हासिल करने, नेट बैंकिंग से ऑनलाइन ट्रांसफर कराने के गुर सिखाए जाते हैं। नई-नई तकनीक पर काम करते हैं। नया हथियार बना है ई-सिम स्वैपिंग। इसमें मोबाइल में अलग से सिम कार्ड डालने की जरूरत नहीं पड़ती, बल्कि सिम कार्ड मोबाइल के अंदर इलेक्ट्रॉनिक रूप में उपलब्ध हो जाता है।

कई ऐप की जानकारी

फर्जीवाड़ा करने वाले ये लोग लेटेस्ट और महंगे मोबाइल रखते हैं, ताकि बदलती तकनीक से वाकिफ हो सकें। इनके मोबाइल में 30 से ज्यादा मनी ट्रांसफर ऐप मिले हैं। वहीं पैरलल स्पेस साफ्टवेयर का इस्तेमाल करते हैं जिससे एक ही मोबाइल से पांच नंबर तक चल सकें।

साइबर ठगी की पाठशाला में सिखाते जालसाजी के ये पाठ

-बातों में फंसा कर खाते व डेबिट या क्रेडिट कार्ड की जानकारी हासिल करना।

-पेटीएम व केवाईसी के नाम पर कॉल करना।

-कैसे किसी से क्विक सपोर्ट, एनी डेस्क जैसे अन्य ऐप डाउनलोड करवाएं।

-एटीएम में स्कीमर और हिडेन कैमरा लगाना।

-डेबिट या क्रेडिट कार्ड के क्लोन बनाना।

-पेमेंट ऐप कंपनी के कर्मचारी को मिलाकर डेटा ट्रांसफर कराना।

जामताड़ा के बाद अलवर, मेवात और कोलकाता नए हॉटस्पॉट

साइबर ठगी गिरोह का जामताड़ा पहले से हॉटस्पॉट तो था ही अब अलवर, मेवात और कोलकाता भी हॉटस्पॉट बन गए हैं। हजारों की संख्या में लोग साइबर फ्रॉड करने का काम कर रहे हैं दूसरी बात यह है कि यह फ्रॉड करने के सिस्टम उनको वही अवेलेबल हो जाता है कहीं जाने की जरूरत नहीं पड़ती।

उत्तर प्रदेश के आईपीएस ( एसपी साइबर क्राइम) प्रो त्रिवेणी प्रसाद सिंह कहते हैं कि साइबर अपराधों में पिछले कुछ समय में रैनसमवेयर अटैक बढ़े हैं। इस तरह का हमला करने वाले किसी सिस्टम को हैक कर उसे लॉक कर देते हैं और उसे खोलने के लिए भारी रकम मांगते हैं। लखनऊ में ऐसे कई मामले सामने आए हैं। उत्तर प्रदेश में मथुरा और राजस्थान से लगी सीमा के करीब कुछ साइबर अपराधी सक्रिय हैं। समय समय पर यहां कार्रवाई करके कुछ अपराधियों को गिरफ्तार भी किया गया है।

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फर्जी फोन कॉल से बेवकूफ बनने वाले बढ़े

ग्लोबल टेक सपोर्ट स्कैम 2021 की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 51 फीसद फ्रॉड पॉप अप एड या विंडो के जरिए हुए हैं। वहीं 42 फीसद भारतीय अवांछित ईमेल, 48 फीसद रिडायरेक्ट वेबसाइट के जरिए हैकर्स के झांसे में आए। वहीं हैरानी की बात है कि अब भी 31 फीसद लोग अवांछित कॉल के जरिए फर्जीवाड़े के शिकार हो रहे हैं। पिछले साल के आंकड़ों से तुलना करने पर पता चलता है कि सबसे ज्यादा इजाफा अवांछित कॉल के जरिए धोखाधड़ी में हुआ है।

इन तरीकों से भी फर्जीवाड़ा

वॉट्सऐप कॉल के जरिए फर्जीवाड़ा-

अगर आपके वॉट्सऐप पर किसी अनजान नंबर से वॉइस कॉल आती है तो आप सावधान हो जाइए, क्योंकि फोन करने वाला आपको ठग सकता है।

यूपीआई के जरिए ठगी-

यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस के जरिए किसी को भी आसानी से पैसे भेजे या मंगाए जा सकते हैं। यूपीआई के जरिए ठग किसी व्यक्ति को डेबिट लिंक भेज देता है। इससे बचने के लिए अनजान डेबिट रिक्वेस्ट को तुरंत डिलीट कर देना चाहिए। अजनबियों के भेजे लिंक पर क्लिक न करें।

क्यूआर कोड से धोखाधड़ी-

क्यूआर यानी क्विक रिस्पॉन्स कोड के जरिए जालसाज ग्राहकों को भी लूटने का काम कर रहे हैं। मोबाइल पर क्यूआर कोड भेजा जाता है और उसे पाने वाला शख्स क्यूआर कोड लिंक को क्लिक करता है तो ठग उसके मोबाइल फोन का क्यूआर कोड स्कैन कर बैंक खाते से रकम निकाल लेते हैं।

बैंक ट्रांसफर के वक्त गंवाते हैं सबसे ज्यादा पैसा

माइक्रोसॉफ्ट सर्वे के मुताबिक, सबसे ज्यादा 43 फीसद लोगों ने अपना पैसा बैंक ट्रांसफर के वक्त खोया है। वहीं, 38 फीसद लोग गिफ्ट कार्ड, 32 भुगतान ऐप, 32 फीसद लोग क्रेडिट कार्ड से भुगतान के वक्त धोखाधड़ी के शिकार हो जाते हैं।

पूर्व आईटी टेलीकॉम सचिव और नैसकॉम के पूर्व प्रेसिडेंट आर चंद्रशेखर कहते हैं कि बैंकों को लोगों को समझाना होगा। कई केस आये हैं कि पासवर्ड लीक हो गये, पासवर्ड हर महीने बदलना ये जरूरी है। बैंकों की भी कुछ जिम्मेदारी होनी चाहिये। अगर ऐसा कोई फ्रॉड बैंक की वजह से हो गया तो किसी का अकाउंट हैक हो गया या डिवाइस हैक हो गया तो बैंक की जिम्मेदारी है कि अमाउंट जल्द वापस करे। कई लोगों के लिये रकम बहुत होती है। एक मैकेनिज्म होना चाहिये कि फौरन रकम को रिस्टोर करें।

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ऐसे डिजटली चोरी हो जाती है आपकी स्क्रीन

साइबर एक्सपर्ट कहते हैं कि कोई भी कॉल टेलीकॉम ऑपरेटर से बैंक से क्रेडिट कार्ड से या इंश्योरेंस कंपनी से आए या उनसे कभी भी सोशल मीडिया पर न जुड़ें। कोई भी कम्युनिकेशन जो वॉट्सऐप या फेसबुक से हुआ हो उसपर भरोसा न करें। कुछ भी शेयर न करें। 4 बार वेरिफाई जरूर करें। किसी भी लालच में न फंसे। क्योंकि वो कह सकता है 5 रुपये दे एक लाख रुपये मिल जाएंगे। 5 रुपये दें तो इंश्योरेंस प्रीमियम दिलवा दूंगा। इस लालच में नहीं फंसे। लोग सोचते हैं कि पांच रुपये तो जाना है लेकिन इससे पहले ठग आपकी स्क्रीन को मिरर कर चुका होता है। आपको एक लिंक भेज कर और वह सब कुछ देख रहा होता है या फिर उसी का लिंक यूज़ करके आप डाटा भर रहे होते हैं और वह सब कुछ देख रहा होता है। इसी डाटा के आधार पर वह आपसे ओटीपी भी पूछ लेता है और आपके अकाउंट से पैसे निकल जाते हैं इसलिए सावधानी ही बचाव है।

साइबर एक्सपर्ट कहते हैं कि दूसरी सबसे बड़ी बात है कि सार्वजनिक जगह पर ओपन वाईफाई का इस्तेमाल संभलकर करें। खासतौर से मोनेटरी ट्रांजैक्शन या पासवर्ड रिनुअल कभी न करें, क्योंकि वाईफाई हैकिंग को लेकर क्राइम तेजी से बढ़ा है। चाहे रेलवे स्टेशनों या एयरपोर्ट पर आप वाईफाई का यूज कर रहे हैं। लेकिन बगल में बैठकर वह आपकी मिरर कर अटैक कर सकता है। वह आपकी तमाम एक्टिविटी को देख रहा होता है। पब्लिक वाईफाई में लोग एक-दूसरे का डाटा देख सकते हैं।

साइबर ठगी से बचने का रास्ता, हमें क्या करना होगा

-इंटरनेट को हल्के में न लें

साइबर एक्सपर्ट अमित दुबे ने कहा कि लोगों में काफी कम जागरूकता है। इंटरनेट पर जाते समय काफी सतर्क रहना चाहिए। लोग इंटरनेट को हल्के में लेते हैं जबकि ज्यादा सतर्कता बरतनी चाहिए। क्योंकि ये ऐसी दुनिया है जहां कौन व्यक्ति किस रूप में आपके सामने आ रहा वह पता नहीं चलता। सोशल मीडिया पर कनेक्ट करते समय ध्यान देना चाहिए हो सकता है सोशल मीडिया पर किसी को भी ट्रस्ट न करें। कोई रिक्वेस्ट आपके फ्रेंड के नाम से आया हो लेकिन वह साइबर फ्रॉड की तरफ से भी आ सकता है हो सकता है कोई साइबर फ्रॉड आपकी दोस्त के नाम से प्रोफाइल बनाकर आपसे जुड़ने की कोशिश कर रहा हो और इसके बाद खेल शुरू होता है कोई फ्रॉड होने की, कोई पैसे मांगने की या किसी लिंक से जुड़ने की। कोई स्किम से जुड़ने की।

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ये मानना होगा कि हम सुरक्षित नहीं हैं

साइबर एक्सपर्ट पवन दुग्गल कहते हैं कि अगर हमें साइबर ठगी से बचना है तो पहले हमें ये मानना होगा कि हम सुरक्षित नहीं हैं। मोबाइल या किसी डिवाइस पर अपनी संवेदनशील जानकारी सेव करके न रखें। कोशिश करें अपनी साइबर सुरक्षा को मजबूत बनाएं। अपने डिवाइस का बैकअप जरूर रखें। ऐप डाउनलोड करते समय सावधानी रखें। अनावश्यक वेबसाइट पर न जाएं। सावधान रहित, सतर्क रहित और जागरूक रहिए।

साइबर सुरक्षा को स्कूलों के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए

जयपुर पुलिस साइबर एक्सपर्ट मुकेश चौधरी कहते हैं कि भारत में साइबर हमले अधिक होने के पीछे सबसे बड़ी वजह यहां लोगों में जागरूकता न होना है। पाइरेटेड सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल भी हमलों के खतरे को बढ़ाता हैं। वह समय आ गया है जब देश मे साइबर सुरक्षा को स्कूलों के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए।

सरकार को क्या करना होगा-बैंकों और टेलीकॉम कंपनियों पर सख्ती बढ़े

साइबर एक्सपर्ट अमित दुबे कहते हैं कि साइबर क्राइम को रोकने के लिए सरकार को कोई बहुत बड़ी टूल नहीं चाहिए कोई बहुत बड़ी डिफेंस सिक्योरिटी सिस्टम नहीं चाहिए, उसके लिए सिर्फ गाइडलाइन चाहिए, बैंकों को सख्त कर दिया जाए कि कोई भी बैंक अकाउंट बिना पर्सनल वेरिफिकेशन के नहीं खोला जाएगा, जिसे फर्जी अकाउंट खोलना बंद हो जाएगा। अमित कहते हैं कि अब दूसरी बात सिम कार्ड की। ओडिशा में 16000 सिम कार्ड बड़ी कंपनियों के मिलते हैं और वह भी प्री-एक्टीवेटेड इसका मतलब सिस्टम पूरी तरीके से ऑर्गेनाइज है। यहां सरकार को सख्ती बरतनी चाहिए, एक भी सिम कार्ड बिना सही केवाईसी के निकलता है तो टेलीकॉम कंपनियों को पेनाल्टी लगाया जाएगा, क्योंकि वह सिम कार्ड किसी ना किसी को आर्थिक नुकसान पहुंचाता है, चाहे पैसे का नुकसान हो या फिर इमेज का नुकसान हो, उसके लिए किसी ना किसी की जवाबदेही तय करनी जरूरी है। टेलीकॉम कंपनियों और बैंकों को जवाबदेह बनाया जाना चाहिए। आम आदमी बैंकों के नाकामियों के लिए क्यों भुगते। यह दो कदम सरकार को जरूर उठाना चाहिए, जिससे सीधे आम लोगों को फर्क पड़ेगा। वहीं, डाटा प्राइवेसी बिल आ जाएगा तो उससे और ज्यादा फर्क पड़ेगा, क्योंकि इससे आपका डेटा आपके देश में ही रहेगा तो बाहर से डाटा लीक होना बंद होगा और यदि होता है तो कंपनियां जवाबदेह होंगी।

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