उत्तराखंड में नहीं है आपदा प्रबंधन का सुदृढ़ ढांचा, आपदाएं हर साल बरपाती हैं कहर

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उत्तराखंड आपदा की दृष्टि से बेहद ही संवेदनशील है। यहां बाढ़, भूकंप, आंधी तूफान, आग लगने, बादल फटने, भूस्खलन, सूख जैसे प्राकृतिक आपदाएं हर वर्ष अपना तांडव मचाती आ रही हैं। इन आपदाओं के समय आमजन और सिस्टम चुपचाप विनाश को देखने के लिए विवश होता है। आपदा को लेकर न तो जन जागरूक बन पाया और न तंत्र जवाबदेह। आपदा में जनहानि के न्यूनीकरण, खोज बचाव, राहत बचाव के लिए आपदा प्रबंधन विभाग तो उत्तराखंड में गठित है, लेकिन इसका सुदृढ़ ढांचा अभी तक नहीं बन पाया है।

इसी संशय के बीच पिछले 15 वर्षों के दौरान कई अनुभव प्राप्त अधिकारियों ने आपदा प्रबंधन विभाग में जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी, खोज बचाव के मास्टर ट्रेनर, जिला आपदा समन्वयक जैसे पदों से त्याग पत्र दिया है और अन्य विभागों में सरकारी व प्राइवेट संस्थानों में गए हैं। जबकि गुजराज, मणिपुर, छत्तीसगढ़ सहित कई राज्यों में आपदा प्रबंधन का ढांचा उत्तराखंड से सुदृढ़ है। लेकिन, उत्तराखंड में पिछले 20 वर्षों के दौरान भूकंप, बाढ़, ग्लेशियर टूटने, भूस्खलन जैसी त्रासदी तबाही मचा चुकी है। लेकिन, यहां भौगोलिक परिस्थितियों के मद्देनजर आपदा प्रबंधन विभाग के ढांचे को सुदृढ़ नहीं किया गया। हां, पिछले 20 वर्षों के अंतराल में शासन स्तर पर इसको लेकर चर्चाएं जरूर हुई हैं। जिसमें आपदा प्रबंधन विभाग के ढांचे का पुनर्गठन करने, आपदा प्रबंधन विभाग को जवाबदेह की भी वकालत हुई है।

इस बार आपदा प्रबंधन मंत्री डॉ. धन सिंह रावत ने आपदा के दौरान विभागीय जबावदेही सुनिश्चित करने के लिए विभागीय ढांचे में स्थायी कार्मिकों की नियुक्ति, संविदा व आउट सोर्स तीन श्रेणी के कार्मिकों की व्यवस्था की बात कही है। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया है कि ऐसे कार्मिकों की भर्ती की जाए, जो अपने-अपने क्षेत्र में दक्ष हों।

जरूरत पड़ी तो इसके लिए विभागीय नियमावली में संशोधन किया जाएगा। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी उत्तरकाशी में आपदा प्रबंधन क्षेत्र का दौरा करने के दौरान आपदा प्रबंधन के ढांचे को सुदृढ़ करने की बात कही है। इससे आपदा प्रबंधन विभाग में वर्षों से संविदा पर काम कर रहे कर्मियों को सुरक्षित भविष्य की उम्मीद है।

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