टीकाकरण के बाद लोगों को हो रही बेचैनी और घबराहट, गंभीर हालत में अस्पताल पहुंच रहे मरीज

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टीका लेने के बाद बेचैनी, घबराहट, चिंता इत्यादि जैसे लक्षणों की वजह से लोग गंभीर रूप से बीमार पड़ रहे हैं। हालांकि टीकाकरण विज्ञान ऐसे मामलों को दुर्लभ नहीं मानता है लेकिन कोविड टीकाकरण में इनकी बढ़ती संख्या को चिंताजनक जरूर मानता है। हालात ऐसे हैं कि टीकाकरण में शामिल कई लोग बेचैनी की वजह से अस्पताल तक पहुंच गए। अभी तक इसकी वजह से देश में पहली मौत भी दर्ज की जा चुकी है।

यह पूरा खुलासा केंद्र सरकार की उस टीकाकरण समिति की रिपोर्ट से हुआ है जो प्रतिकूल घटनाओं को लेकर हर माह समीक्षा करती है। रिपोर्ट के अनुसार पिछले डेढ़ महीने में टीकाकरण के बाद 60 प्रतिकूल घटनाएं सामने आई हैं। जब इनमें से हर मामले की अलग-अलग समीक्षा की गई तो पता चला कि 50 फीसदी से ज्यादा यानी 36 लोग ऐसे थे जिन्हें टीका लगने के बाद उस पर भरोसा नहीं था और बेचैनी होने से उन्हें आईसीयू में भर्ती करना पड़ा।

विशेषज्ञों के मुताबिक, कोरोना से बचने के लिए लोग टीका तो ले रहे हैं लेकिन उन्हें भरोसा नहीं हो रहा कि जो टीका लिया है, वह उनके लिए पूरी तरह से सुरक्षित है। उन्हें लगता है कि बुखार, दर्द या फिर ब्लड क्लॉट के जरिये कहीं उन्हें कुछ हो ना जाए। यही चिंता अस्पताल तक पहुंचा रही है। दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और मध्यप्रदेश के आठ मरीजों से बातचीत में यह जानकारी मिली।

टीका पर पारदर्शिता न होना बड़ी वजह
समिति के एक वरिष्ठ सदस्य ने कहा कि टीकाकरण से पहले अथवा बाद में बेचैनी से जुड़े मामले काफी समय पहले से मिलते आए हैं लेकिन अभी कोविड टीकाकरण में इनकी संख्या बढ़ी है। इसके पीछे बड़ी वजह टीका पर पारदर्शिता न होना है। कोविशील्ड और कोवाक्सिन का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि अगर केंद्र सरकार शुरुआत से ही पारदर्शिता पर जोर देती तो लोगों को यकीन करना पड़ता। वहीं नई एम्स दिल्ली के एक वरिष्ठ मनोचिकित्सक ने कहा कि स्पष्ट आंकड़े, वैज्ञानिक तथ्य और समाज के हर तबके तक सुरक्षित और असरदार वैक्सीन का संदेश पहुंचाने के लिए पारदर्शिता बहुत जरूरी है।

अलग-अलग है कारण
इनके अलावा नई दिल्ली स्थित इहबास अस्पताल के डॉ. ओमप्रकाश ने बताया कि टीका लेने के बाद घबराहट या बेचैनी के अलग-अलग कारण हो सकते हैं। सुई लगते ही कई लोग दर्द से बैचेन या घबरा जाते हैं। इसे एक्यूट स्ट्रेस रेस्पांस कहते हैं। इसी तरह वेसोवेगल रिएक्शन होता है जो दिमाग में एक नर्व होती है जो अचानक से रिएक्ट करती है। इसकी वजह से मरीज की मौत तक हो जाती है। यह सब टीकाकरण एंजाइटी से जुड़े मामले हैं जिन्हें बेहतर सूचना और जागरूकता के जरिए रोका जा सकता है। लोग जब भी टीका लेने के लिए घर से निकले तो एकदम बेखौफ और भ्रम से दूर रहते हुए भरोसा रखें।

क्या कहती है समिति की रिपोर्ट
टीकाकरण समिति के अनुसार 27 मई तक देश में 60 मामले सामने आए, जिन्हें टीका लेने के बाद प्रतिकूल असर हुआ। इन सभी की हालत इतनी गंभीर थी कि ये विभिन्न अस्पतालों के आईसीयू में उपचाराधीन थे। समिति ने 60 में से 55 मामलों की समीक्षा की क्योंकि पांच केस सीधे तौर पर टीकाकरण से जुड़े नहीं थे। 55 में से 36 मरीज आईसीयू तक इसलिए पहुंच गए क्योंकि उनमें टीका लगने के बाद बेचैनी हुई। जबकि 18 लोग टीका लेने के बाद प्रतिकूल असर मिलने पर भर्ती हुए। इस बीच एक मरीज ऐसा भी मिला जिसमें टीका लेने के बाद एंजाइटी और टीका का प्रतिकूल असर दोनों ही मुख्य कारण थे। इसलिए समिति ने सरकार को टीकाकरण से जुड़ी चिंता पर विशेष जोर देने की सलाह तक दी।

इन राज्यों में विशेष अभियान की जरूरत
समिति के अनुसार गुजरात, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, पंजाब, पश्चिम बंगाल, हरियाणा, राजस्थान और मध्यप्रदेश में टीकाकरण को लेकर विशेषज्ञ अभियान चलाने की जरूरत है। ताकि लोगों में टीका के प्रति न सिर्फ भरोसा कायम हो सके बल्कि टीकाकरण से जुड़ी भ्रांतियों को दूर करना भी जरूरी है। खासतौर पर इन राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों में जमीनी प्रयासों की अधिक मांग है।

सरकार ने गंभीरता से नहीं ली सलाह
कोविड टीकाकरण शुरू होने से पहले ही विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने ऐसे मामले सामने आने की आशंका व्यक्त की थी। साथ ही सरकार को सलाह दी थी कि लोगों का आत्मविश्वास बढ़ाकर इस स्थिति से बचना आसान है। ऐसा करने के लिए बकायदा डब्ल्यूएचओ के पास प्रशिक्षण के लिए एक मॉडयूल भी है जिसके बारे में हर चिकित्सक को पता है।

पहले से हो रही चर्चा, फिर भी ध्यान नहीं
मेडिकल जर्नल साइकोलॉजिकल मेडिसिन में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार तुर्की में 31 और ब्रिटेन में 14 फीसदी लोगों ने टीका पर भरोसा नहीं जताया। अक्तूबर 2020 को प्रकाशित इस अध्ययन में दोनों ही देश के तीन फीसदी लोगों ने टीकाकरण में शामिल होने से इनकार तक कर दिया। इसी तरह द इंटरनेशनल मेडिकल जर्नल ऑफ क्लीनिकल प्रैक्टिस में दिसंबर 2020 को प्रकाशित अध्ययन के अनुसार तुर्की में 40 फीसदी लोगों को कोविड-19 के टीका से ज्यादा खबर, सोशल मीडिया और रिश्तेदार-दोस्तों की सलाह पर ज्यादा भरोसा माना।

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