मकान को आगरा में छोड़, बचपन की यादों का कारवां लेकर पाकिस्तान गए थे पूर्व राष्ट्रपति ममनून हुसैन

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पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति ममनून हुसैन भले ही अब दुनिया में नही रहे हों। मगर, आगरा की यादें उनके मन में हमेशा बसी रहीं। उनका मकान भले ही आगरा में रह गया था। मगर, वह बचपन की यादों का कारवां अपने साथ लेकर गए थे। चाहे यहां की गलियों में बचपन में दोस्तों के संग खेलना रहा हो या फिर दादा के साथ बग्घी से ताज की सैर करना। इन यादों को हमेशा अपने साथ संजो कर रखा था।आगरा का नाम आते ही वह जज्बाती हो जाते थे।

पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति ममनून हुसैन का जन्म आगरा में नाई की मंडी इलाके की एक बस्ती छोटी अथाई में वर्ष 1940 में हुआ था।उनके पिता का नाम उस्ताद फजल था। जबकि बाबा उस्ताद जफर के नाम से आगरा में प्रसिद्ध थे। ममनून हुसैन का बचपन छोटी अथाई में जिस मकान में बीता था। पूर्व राष्ट्रपति के मंटोला में रहने वाले भांजे सीमाब आलम ने बताया कि ममनून हुसैन चार भाइयों में तीसरे नंबर पर थे। सबसे बड़े अख्तर उनसे छोटे मज्जो जबकि जाहिद सबसे छोटे थे। ममनून हुसैन के एक बहन मुमताज थीं। उनकी मां का नाम सिराजन था।

छोटी अथाई के जिस मकान में ममनून का जन्म हुआ व बचपन बीता था। उसमें अब उनके रिश्तेदार निजाम का परिवार रहता है। निजाम की भी दस साल पहले मौत हो गई। उक्त मकान में अब निजाम के बेटे फहीम व ताहिर आदि रहते हैं। ममनून हुसैन के बाबा जफर उस्ताद की नाई की मंडी में अनाज मंडी में जूता कारखाना था। जफर उस्ताद वर्ष 1949 में परिवार के साथ कराची चले गए। वहां पर पहले जूता फैक्ट्री खोली। इसी के साथ उन्होंने कपड़ा मिल लगाई। कुछ ही दशक में उनकी गिनती पाकिस्तान के प्रमुख कपड़ा व्यापारियों में होने लगी थी।

हिंदुस्तानी बिरादारी के अध्यक्ष डाक्टर सिराज कुरैशी के अनुसार ममनून हुसैन का आगरा से विशेष लगाव था। वह 1980 के दशक में परिवार के साथ अागरा आए थे। जिससे कि वह पत्नी और बच्चों को अपना पुराना मकान और ताजमहल दिखाने लाए थे। मंटोला में रहने वाले रिश्तेदारों से भी मिलवाया था। राष्ट्रपति बनने के बाद भी ममनून हुसैन का परिवार यहां रहने वाले रिश्तेदारों से फोन पर संपर्क में रहता था।

दो ख्वाहिश रह गईं अधूरी

हिंदुस्तानी बिरादारी के अध्यक्ष डाक्टर सिराज कुरैशी के अनुसार ममनून हुसैन दो ख्वाहिश अधूर रह गईं। उनकी पहली ख्वाहिश ख्वाजा मोइनउद्दीन चिश्ती की दरगाह पर जियारत के लिए आना था। जबकि दूसरी ख्वाहिश एक बार और आगरा आने की थी। मगर, उनकी यह दोनों ही ख्वाहिश पूरी नहीं हो सकीं।

राष्ट्रपति बनने के बाद बंधी थी उम्मीद

ममनून हुसैन वर्ष 2013 में पाकिस्तान के राष्ट्रपति बने थे। उस समय आगरा के लोगों को उनके यहां आने की उम्मीद बंधी थी। मगर, 1982 के बाद वह दोबारा आगरा नहीं आ सके।

यादों में बसी थी बाबा की बग्घी से ताज की सैर

ममनून हुसैन की यादों में बग्घी से ताज की सैर बसी थी। उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा था कि उनके बाबा बचपन में बग्घी में बैठाकर ताजमहल की सैर कराने ले जाते थे।

अलीमउद्दीन से थी जिगरी दोस्ती

डाक्टर सिराज कुरैशी ने बताया ममनून हुसैन और अलीमउद्दीन आपस में जिगरी दोस्त थे। दोनों बचपन में साथ खेले थे। अलीमउद्दीन अलीगढ मुस्लिम विश्चविद्यालय में प्रोफेसर थे। डाक्टर सिराज के अनुसार ममनून ने एमबीए करने के बाद बैंक में नौकरी की। मगर, कुछ ही साल बाद उन्होंने बैंक की नौकरी छोड़ दी थी।

ममनून के पिता के 105 साल पुराने दोस्त

ममनून के पिता के उस्ताद फजल हुसैन के दोस्त इमामउद्दीन कुरैशी को परिवार के सदस्यों के नाम आज भी याद है। इमामुद्दीन की उम्र 105 साल है, वह और फजल दोनों कई साल तक साथ रहे थे। दोनों के बीच अच्छी दोस्ती थी।

खंडहर में तब्दील हो चुकी है जूता फैक्टी, मकान भी नया बन गया

ममनून के बाबा की जूता फैक्ट्री पूरे आगरा में प्रसिद्ध थी। नाई की मंडी में बनी यह फैक्ट्री अब खंडहर में तब्दील हो चुकी है। वहीं उनका घर जहां वह पैदा हुए थे। वह तोड़कर नया बनाया जा चुका है। जिसमें उनके रिश्तेदार रहते हैं।

तमाम परिवारों ने झेला बंटवारे का दंश

सन 1947 में हुए देश के बंटवारे का दंश तमाम परिवारों ने झेला। पूर्व राष्ट्रपति ममनून हुसैन के परिवार को भी हिंदुस्‍तान छोड़कर जाना पड़ा। हालांकि मंटोला इलाके में आज भी जो पुराने बुजुर्ग हैं, वे उस दौर के बारे में बताते हैं कि जब ममनून हुसैन को पाकिस्‍तान का राष्‍ट्रपति चुना गया, तब भारत में बसे मुस्लिम परिवारों को भी फख्र हुआ। इस मिट्टी में पैदा हुआ इंसान पड़ोसी मुल्‍क के सर्वोच्‍च पद पर आसीन हुआ। तब से लेकर अब तक दोनों ही मुल्‍कों का नक्‍शा बदल चुका है। अब तो केवल बातें ही शेष हैं।

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