कोरोना की तीसरी लहर पर नियंत्रण के लिए टारगेट बेस्ड टेस्टिंग जरूरी

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कोरोना की दूसरी लहर कमजोर पड़ गई है। पर चिंता इस बात की है कि मामले कम होने के साथ ही कोरोना जांच में भी अब गिरावट आ रही है। जबकि कोरोना पर नियंत्रण के लिए शुरुआत से ही ट्रिपल टी यानी ट्रेस, टेस्ट और ट्रीटमेंट पर जोर दिया जा रहा है। जानकार भी यह मानते हैं कि जांच में निरंतरता बनी रहनी चाहिए। तीसरी लहर की आशंका के बीच जांच में सुस्ती भविष्य के लिए बड़ा खतरा बन सकती है। इस वक्त ‘टारगेट बेस्ड टेस्टिंग’ पर जोर दिया जाना चाहिए। बाजार, मंडी, बस अड्डा, रेलवे स्टेशन सहित तमाम सार्वजनिक व संवेदनशील क्षेत्रों में नियमित रूप से सैंपलिंग की आवश्यकता है। फल-सब्जी विक्रेता, दुकानदार, पर्यटक व ऐसे तमाम व्यक्तियों की सैंपलिंग होती रहनी चाहिए।

तीन माह में सबसे कम जांच

सोशल डेवलपमेंट फार कम्युनिटी के संस्थापक और स्वास्थ्य मामलों के जानकार अनूप नौटियाल का कहना है कि उत्तराखंड में कोरोना की दस्तक हुए 68 सप्ताह हो चुके हैं। 68 सप्ताह (27 जून- 3 जुलाई) में जांच की स्थिति देखें तो यह आंकड़ा तीन माह में सबसे कम है। जबकि तीसरी लहर का खतरा अभी बना हुआ है। आवश्यकता इस बात की है कि राज्य सरकार जांच के लिए जिलेवार टारगेट तय करे और इसकी नियमित मानिटरिंग की भी जाए। नैनीताल एक उदाहरण है, जहां जनसंख्या ज्यादा पर जांच तुलनात्मक रूप से कम की जा रही है। किसी जिले में जांच की रफ्तार कम है, तो यह इसका कारण भी स्पष्ट होना चाहिए।

कम्युनिटी प्लान पर करें फोकस

अनूप का कहना है कि राज्य सरकार को एक कम्युनिटी प्लान तैयार करना चाहिए। जिसमें तीन चीज शामिल की जाएं। टेस्टिंग, टीकाकरण और कोरोना के अनुरूप व्यवहार। इस काम में रेजिडेंट सोसायटी, पार्षद, ट्रेड यूनियन, व्यापारी संगठन व ऐसी तमाम इकाईयों को साथ लिया जा सकता है। टारगेट ग्रुप बनाकर रैंडम सैंपलिंग की जानी चाहिए। इसके अलावा सीरो सर्वे भी एक विकल्प हो सकता है।

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