कोरोना वायरस: देश में घट रही दूसरी लहर, ग्रामीण भारत की चिंता अधिक
देश में हर दिन संक्रमण के मामले कम हो रहे हैं। वहीं विशेषज्ञों का अनुमान है कि अगले कुछ सप्ताह में दूसरी लहर पूरी तरह से शांत हो सकती है लेकिन इस बीच ग्रामीण क्षेत्रों में संक्रमण को लेकर चिंता और गंभीर हो चुकी है।
यहां स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति काफी कमजोर है जिन पर सरकारों को तेजी से काम करना होगा। साथ ही अब गणितीय मॉडल्स संकेत दे रहे हैं कि इसी माह के अंत तक दूसरी लहर के मामले सबसे कम होंगे। साथ ही सक्रिय मरीजों की संख्या भी पांच लाख से और नीचे आ जाएगी।
पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के डॉ. गिरधर बाबू का कहना है कि देश में संक्रमण दर 4.66 फीसदी दर्ज की जा चुकी है। वहीं आर वैल्यू यानी री प्रोडक्शन (प्रजनन दर) भी घटकर 0.82 फीसदी तक पहुंच गई है।
इन दोनों में ही एक घटता हुआ क्रम लगातार देखने को मिल रहा है जिसके आधार पर गणितीय आकलन कहता है कि 28 जून के आसपास कभी भी दूसरी लहर के सबसे कम मामले सामने आ सकते हैं। एक अनुमान यह भी है कि इस माह के अंत तक एक दिन में संक्रमित होने वालों की संख्या 20 हजार से भी कम हो जाए जो अभी 90 हजार से अधिक देखने को मिल रही है।
वहीं स्वास्थ्य अर्थशास्त्री प्रो. रिजो एम जॉन का कहना है कि दूसरी लहर के मामले कम हो रहे हैं और देश अब अनलॉक की दिशा में काफी आगे बढ़ रहा है। ऐसे में दो बातें सबसे अहम हैं कि लोगों के व्यवहार में बदलाव नहीं होना चाहिए।
साथ ही सरकारों को भी लापरवाह नहीं होना है। ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाएं बेहद कमजोर हैं जिन्हें जल्द से जल्द मजबूत करना चाहिए। 52.48 फीसदी नए मामले अभी भी इन इलाकों से हर दिन देखने को मिल रहे हैं।
कुछ ही राज्यों में संक्रमण अधिक
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़े कहते हैं कि महाराष्ट्र और केरल में अभी भी वायरस की संक्रमण दर अधिक है। दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब सहित अन्य राज्यों में यह लगातार कम हो रही है।
गांव, कस्बा, छोटे शहर पर असर
कोरोना की दूसरी लहर में 53 फीसदी मामले ग्रामीण जिलों से दर्ज किए गए हैं। जबकि 52 फीसदी मौतें भी इन्हीं जिलों में सामने आई हैं। ग्रामीण जिलों में कोरोना की मृत्युदर अभी भी 2.21 फीसदी है जोकि राष्ट्रीय औसत 1.22 फीसदी की तुलना में करीब एक फीसदी अधिक है। इसमें गांव के साथ साथ कस्बे और छोटे शहर भी शामिल हैं।
ग्रामीण स्वास्थ्य की जरूरतें:
38 फीसदी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों की आवश्यकता।
29 फीसदी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की जरूरत।
76 फीसदी डॉक्टरों की सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में कमी।
56 फीसदी से अधिक रेडियोलॉजिस्ट की जरूरत।
35 फीसदी लैब तकनीशियन की सीएचसी-पीएचसी में जरूरत।
62 फीसदी विशेषज्ञ डॉक्टरों की तहसील-पंचायत स्तर पर कमी।
(सभी आंकड़ें : सेंटर फॉर साइंस एंड इनवायरमेंट के अनुसार)