नैनीताल जिले में ब्लैक फंगस के पांच नए केस मिले, एक संक्रमित की हुई मौत
उत्तराखंड में शुक्रवार को नैनीताल जिले में ब्लैक फंगस के पांच नए मरीज मिले हैं जबकि एक मरीज की मौत हुई है। वहीं प्रदेश में 16 मरीज स्वस्थ हुए हैं। स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट के अनुसार देहरादून जिले में कुल मरीजों की संख्या 231 और 30 मरीजों की मौत हो चुकी है। ऊधमसिंह नगर जिले में एक मरीज और एक की मौत हो चुकी है।
जांच के बाद ही लगाए जाते हैं ब्लैक फंगस के इंजेक्शन
ब्लैक फंगस के इलाज में लगाए जाने वाले किसी भी इंजेक्शन के इस्तेमाल पर रोक नहीं है। विशेषज्ञ डॉक्टरों ने इसको लेकर स्थिति स्पष्ट की है। उनका साफ कहना है कि ब्लैक फंगस के इलाज में लगने वाले लिपिड एम्फोटेरिसिन-बी को देने से पहले मरीज के हाइड्रेशन सिस्टम और अन्य अंगों की समुचित जांच की जाती है। वहीं महंगा वाला इंजेक्शन किडनी को नुकसान नहीं पहुंचाता ।
संक्रमित को लगाए जाने वाले इंजेक्शन दो तरह के होते हैं। इसमें एक लगभग 350 रुपए की कीमत वाला होता है। जिसे लिपिड एम्फोटेरिसिन-बी के नाम से जाना जाता है। यह बहुत नेफ्रोटॉक्सिक होता है। जिसके इस्तेमाल से किडनी पर गलत असर पड़ता है। दूसरा जो लाइपोसोमल एम्फोटेरिसिन-बी इंजेक्शन है और लगभग 6000 रुपए तक का आता है, वह किडनी पर नकारात्मक असर नहीं डालता है। फिर भी दोनों तरह के इंजेक्शन को मरीज को देने के से पहले प्रॉपर हाइड्रेशन मेंटेन करने के साथ ही जरूरी जांचें कराई जाती हैं ताकि उससे किडनी को ज्यादा नुकसान न हो।
– डॉ. नारायणजीत सिंह,मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ फिजीशियन,राजकीय दून मेडिकल कॉलेज अस्पताल
मरीज का पहले ब्लड टेस्ट कराया जाता है। अगर मरीज की किडनी ठीक होगी या वह डायलिसिस वगैरह नहीं करा रहे होंगे, तभी यह इंजेक्शन दिया जा सकता है। इस स्थिति में सहायक इलाज शुरू कर पहले मरीज के अंदरूनी अंगों की क्रियाशीलता ठीक की जाती है। महंगा वाला इंजेक्शन जो कि कम उपलब्ध हो पाता है वह किडनी को ज्यादा नुकसान नहीं करता है। वैसे भी ब्लैक फंगस का इलाज भी कोरोना की तरह ही तय गाइडलाइन और प्रोटोकॉल के तहत किया जा रहा है।