Chhattisgarh Naxal Attack: चारों तरफ बिखरे थे जवानों के शव, खौफ का फैला था साया, मौके पर पहुंची हमारी टीम

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बड़ी वारदात थी। दुर्गम इलाका था। मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ से प्रकाशित जागरण समूह के समाचार पत्र नईदुनिया की टीम रात तीन बजे ही मौका-ए-वारदात के लिए रवाना हो गई। घने जंगलों, नदी-नालों को पार कर जिला मुख्यालय सुकमा से करीब 100 किमी का सफर बाइक पर पूरा करने के बाद जब टीम घटनास्थल टेकलगुड़ा गांव पहुंची, तो अत्याधुनिक हथियारों से लैस नक्सलियों ने रोक लिया। पूछताछ के बाद जब संतुष्ट हो गए, तभी आगे जाने दिया।

पतझड़ से वीरान हुए जंगल रात के साए में झुलसते से लगे। यहां चारों ओर मौत की गंध बसी थी। दहशत भरा मंजर था। हथियारबंद नक्सली चौकसी कर रहे थे। यहां-वहां बिखरे थे शहीद जवानों के शव। किसी की वर्दी गायब तो किसी के जूते नदारद..। नृशंसता की हद तो यह थी कि कुछ जवानों के शरीर के अंग भी गायब मिले। बड़ा ही खौफनाक दृश्य आंखों के सामने था।

सुबह की पहली किरण के साथ ही हम नक्सलियों की मांद में पहुंच चुके थे। आधा किलोमीटर के दायरे में जहां देखो वहीं शहीद जवानों के शव नजर आ रहे थे। सुबह साफ हो गया कि जिन्हें एक दिन पहले लापता बताया जा रहा था, वे अपनी माटी के लिए कुर्बान हो चुके थे।

नक्सलियों का गढ़ है टेकलगुड़ा गांव

बीजापुर और सुकमा जिले की सरहद पर बसा टेकलगुड़ा गांव नक्सलियों का गढ़ है। इस इलाके में उनकी पूरी बटालियन सक्रिय है। दुर्दांत नक्सल कमांडर माड़वी हिड़मा का गांव भी इसी इलाके में है। पिछले कई दिनों से फोर्स को सूचना मिल रही थी कि हिड़मा इसी तरफ छिपा हुआ है, पर हिड़मा तो फोर्स को फंसाने की फिराक में था। यहां नक्सलियों का दुस्साहस इतना है कि जब टीम नईदुनिया मौके पर पहुंची तो अत्याधुनिक हथियारों से लैस ग्रामीण वेशभूषा वाले नक्सलियों ने रास्ता रोक लिया। कौन हो? फोर्स के मुखबिर..? किसने भेजा है? उन्होंने पूरी जांच पड़ताल की। जब संतुष्ट हो गए कि पत्रकार हैं, तो खुद ही बताने लगे कि कहां-कहां जवानों के शव हैं। एक शव दूर जंगल में है, चलोगे? इसके बाद उन्हीं में से एक ने दूसरे साथी को सचेत करते हुए कहा, ‘नहीं, अगर फोर्स आ गई तो दिक्कत होगी।’ सूरज अब निकलने लगा था।

महुआ के पेड़ के नीचे एक ही जगह पड़े थे छह शव 

शनिवार शाम खबर आई कि बीजापुर जिले के तर्रेम थाना क्षेत्र के टेकलगुड़ा-जोन्नागुड़ा के जंगलों में नक्सलियों से मुठभेड़ में पांच जवान शहीद हो गए हैं। देर रात तक यह साफ नहीं हुआ कि वास्तव में वहां हुआ क्या है। इलाका दुर्गम था, लिहाजा रात में रेस्क्यू भी नहीं चलाया जा सका। कई तरह की आशंकाएं तैरती रहीं, जो अगले दिन सच साबित हुईं। 22 जवान इस घटना में शहीद हुए हैं। उनके शवों को बाहर निकालने के लिए अलग से आपरेशन चलाना पड़ा। वायुसेना के हेलीकाप्टर इस काम में लगाए गए। मुठभेड़ टेकलगुड़ा गांव के पास हुई थी। गांव में भी शव पड़े थे। गांव के पास महुआ के पेड़ के नीचे एक ही जगह छह शव पड़े थे। पेड़ के नीचे पड़े एक शव की जांघ में शर्ट के फटे हुए कपड़े की पट्टी बंधी थी। संभवत: शहीद जवान को पहले जांघ में गोली लगी होगी। इस पर वह शर्ट को फाड़कर उसकी पट्टी बांध लड़ता रहा और आखिरकार शहीद हो गया। पास ही एक और पेड़ के पास सात जवानों के शव पड़े थे। आसपास और तीन जवानों के शव थे। जिधर देखो, उधर शव ही नजर आ रहे थे। किसी का पैर नदारद था तो किसी का हाथ। जमे हुए खून से धरती लाल हो चुकी थी। आधा किमी के दायरे में 20 जवानों के शव पड़े थे।

एक और आपरेशन

टेकलगुड़ा गांव घोर नक्सल प्रभावित है। यहां सड़क, पानी, बिजली, स्कूल आदि कोई सुविधा नहीं है। यहां नक्सलियों का ठिकाना है। पहली बार फोर्स इस इलाके में घुसी थी। नक्सलियों ने गांव खाली करा दिया और उसे जंग का मैदान बना दिया। घरों में ताले झूलते रहे और गांव लाशों से पट गया। ऐसे इलाके से शव निकालना भी मुश्किल काम था। फोर्स ने वहां पहुंचकर एक और आपरेशन शुरू किया। वायुसेना के हेलीकाप्टर पहली बार यहां उतरे। शवों के पैर में पहले लंबी रस्सी बांधी गई। दूसरे छोर से उसे खींचा गया। उसके बाद उन्हें ससम्मान उठाकर हेलीकाप्टर तक ले जाया गया। रेस्क्यू में लगे एक जवान ने बताया, ‘दरअसल, नक्सली शवों के नीचे बम लगा देते हैं। इसलिए ऐसा करना पड़ता है।’ हम लौट रहे थे तभी पता चला कि रेस्क्यू टीम का एक जवान भी नक्सलियों के प्रेशर बम की चपेट में आकर घायल हो गया है। यहां जंगल में जगह-जगह वूबी ट्रेप, स्पाइक होल, प्रेशर बम और आइईडी लगे हैं।

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