वोकल पफाॅर लोकल को साकार करता ओड़ीओपी
भारत ने विकासक्रम में अपनी संस्कृति और अध्यात्म की वृहत परंपरा का विकास तो किया ही साथ ही ज्ञान विज्ञान कला तथा उद्यम की ऐसी शैलियों का निर्माण किया जो भारत की विशिष्ट पहचान बनीं। इन शैलियों का उद्भव देशज थाॉ लेकिन पहुंच राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय। इस निद्दमत हुई अर्थव्यवस्था ने भारत में नगरीय क्रांतियों को संपन्न किया और गांवों को भी रिपब्लिक की हैसियत तक पहुंचाया। शायद यही वजह है कि विजेताओं ने उत्पादन की स्थानीय तकनीकों व शैलियों को नष्ट किया और भारत के गांवों को जीतने की निरंतर कोशिश की। अभी हाल ही में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आत्मनिर्भर भारत के लिए ‘वोकल फॉर लोकलश् की अनिवार्यता पर बल दियाॉ तो अकस्मात इतिहास के पन्ने मस्तिष्क में पलटते चले गए और आने वाले समय में भारत की वही तस्वीर फिर आकार लेने लगी जिसके लिए महाकवि तुलसी कह रहे थेदृ‘निहं दरिद्र कोउ दुखी न दीनाॉ निहं कोउ अबुध न लच्छन हीना।श् आधुनिक आद्दथक शब्दावली में कहें तो सही अर्थों में भारतीय अर्थव्यवस्था के सर्वसमावेशी विकास का मॉडल यही था और यही भारतीय हैपीनेस का आधार। घ् भारतीय इतिहास के पृष्ठों में प्राचीन काल के आद्दथक ढांचे को झांक देखें तो स्पष्ट हो जाएगा कि उस दौर में राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का स्वरूप सुनिश्चित न होने के बावजूद भारत की गिल्ड्स (शिल्प अथवा व्यावसायिक संघों या श्रेणियों) ने अपने कौशलॉ अपनी तकनीक और अपने उत्पादों के जरिए विदेशी बाजार में इतनी प्रभावशाली उपस्थिति दर्ज कराई थी कि पश्चिम के व्यापारी और विचारक विलाप करने के लिए विवश हो गए थे। इस संदर्भ में एक और बात पर भी ध्यान देने की जरूरत हैॉ वह यह कि अपनी माटीॉ मां का दिया हुआ मोटा कपड़ा और मोटे अनाज की रोटी ने ही भारत को पूरी तरह से गुलाम नहीं होने दिया। आज की विश्वव्यवस्था और बाजार की प्रतिस्पर्धा को देखते हुए यह आवश्यक हो चुका है कि देशज और पारंपरिक कलाओंॉ शिल्पों व उत्पादों को भारतीयों के सेंटीमेंट्स से जोड़ते हुए आधुनिक तकनीक व कौशल से संपन्न कर गुणवत्तापूर्ण प्रतिस्पर्धी बनाया जाए। यह भारत की मौलिक विशेषता के अनुकूल तो है हीॉ लेकिन कोविड १९ जैसी आपदा ने हमें यह सिखा दिया है कि इकोनॉमी का यह मॉडल भारतीय लोकजीवन के निकट होने के साथदृसाथ आत्मनिर्भरता व खुशहाली की बुनियादी विशेषताओं से संपन्न भी। अहम बात यह है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने इसे सबसे पहले समझा और २०१८ में यूपी दिवस के अवसर पर ‘वन ििड्ट्ररक्टॉ वन प्रोडक्टश् (ओडीओपी) कार्यक्रम के माध्यम से इस इकोनॉमिक मॉडल की आधारशिला रखी। घ् ओडीओपी कार्यक्रम क्लासिकल इकोनॉमी के चश्मे से देखने से भले ही कुछ खास न लगेॉ लेकिन यह भारत की पारंपरिकॉ सांस्कृतिक और देशज अर्थव्यवस्था की संवेदनशीलता से संपन्न और समावेशी विकास का महत्वपूर्ण कारक है। दरअसलॉ क्लासिकल इकोनामी प्राइस मैकेनिज्म पर चलती हैॉ जहां मांग और पूद्दत की शक्तियां केवल लाभ के उद्घ्ेश्य से काम करती हैंय जबकि ओडीओपी का मूल सरोकार भारतीय सेंटीमेंट्स से हैॉ इसके बाद पारंपरिक शिल्पों के पुनरुûद्धार व संरक्षण के साथदृसाथ मार्केट मैकेनिज्म की विशिष्टता। शायद इसे ही देखते हुए प्रधानमंत्री ने स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से दिए गए अपने भाषण में ओडीओपी को जगह दी। वित्त मंत्री ने इसे संघीय बजट में स्थान दिया और केन्द्रीय रेल एवं वाणिज्य व उद्योग मंत्री ने स्टेट मिनिस्टर्स के साथ बैठक में इस क्षेत्र में मिशन मोड में काम करने की सलाह दी। यानी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का ब्रेन चाइल्ड देश की अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण कम्पोनेंट ही नहीं बनेगाॉ बल्कि ग्राम्य अर्थव्यवस्था में खुशहाली का मुख्य कारक भी बनेगा। घ् अगर हम उत्तर प्रदेश की बात करें तो यह प्रदेश आबादी के लिहाज से यूरोप के कई विकसित देशों का संयुक्त रूप तो है हीॉ लेकिन भौगोलिकॉ सांस्कृतिक व एथनिक के साथदृसाथ जियोदृपॉलिटिकल वष्टि से एक विशिष्ट पहचान रखता है। ये विशिष्टताएं अपनी परंपराओंॉ अपनी कलाओंॉ अपने शिल्पोंॉ उत्पादों आदि के जरिए अपनी निरंतरता को बनाए रखने के साथदृसाथ स्वयं को समृद्ध करती हैं। किसी भी राष्ट्र या उसकी राजनीतिक इकाई के विकास की पटकथा लिखते समय इनकी उपेक्षा नहीं की जा सकतीॉ क्योंकि ये लोकजीवन की समरसता और खुशहाली का मूलाधार होती हैं। तो क्या इसका अर्थ यह निकाला जा सकता है कि उत्तर प्रदेश सरकार का ओडीओपी कार्यक्रम आद्दथक समावेशिता के साथदृसाथ रूरल प्रॉस्पैरिटी एवं ईज आफ लाइफ का आधार बन सकता हैघ् घ् इसमें कोई संशय नहीं कि ओडीओपी कार्यक्रम न केवल उत्तर प्रदेश कीॉ बल्कि संपूर्ण भारतीय अर्थव्यवस्था में ग्राम्य अर्थव्यवस्था को एक नई दिशा दे सकता है। लेकिन इसके लिए यह जरूरी है कि ओडीओपी उत्पादों को मार्केट मैकेनिज्म से कनेक्ट किया जाए। इसके लिए फैसलिटेशन और मार्केटाइजेशन यानी डिजाइनिंगॉ पैकेजिंगॉ ब्रांडिंग की जरूरत होती है। इन सबके साथ ही एक जो और सबसे महत्वपूर्ण बात है कि इससे जुड़े प्रॉडक्ट्स को लोगों के सेंटीमेंट्स से जोड़ा जाए। जब कोई प्रॉडक्ट सेंटीमेंट्स के साथ जुड़ता हैॉ तो उसकी मांग स्वतः स्फूर्त होती है। इस संदर्भ में हमें यूरोप से सीखने की जरूरत हैॉ जहां इस तरह के प्रॉडक्ट्स को यूरोपीयों के सेंटीमेंट से जोड़ दिया जाता है। लेकिन इसके लिए प्वाइंट ऑफ टाइम की तलाश करनी होगी। घ् बाजार की प्रतियोगिता में दो फैक्टर और महत्वपूर्ण होते हैं। एक है ‘व्हाट टू प्रेजेंटश् और दूसरा है दृ‘हाउ टू प्रेजेंटश् (यानी बाजार में क्या पेश करें और कैसे)। इसमें पहला पक्ष ब्रांड की विविधता और उसकी क्वालिटी ऑफ स्टैंडर्ड की बात करता है और बाजार में उतारने की रणनीति की बात करता हैॉ जिसकी सेंटीमेंट्स के साथ कनेक्ट में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। वैसे आज की बाजार अर्थव्यवस्था में ‘हाउ टू प्रोड्यूसश् उतना महत्वपूर्ण नहीं हैॉ जितना कि ‘हाउ टू प्रेजेंटश् है। इसलिए ब्रांड की डिजाइनिंग और मार्केटिंग बेहद निर्णायक चर बन जाते हैं। इन सभी पहलुओं पर उत्तर प्रदेश सरकार ने मिशन मोड पर काम किया है। घ् कुल मिलाकर भारत की आत्मनिर्भरता के लिए वोकल फॉर लोकल एक निर्णायक चर हैॉ जो अर्थव्यवस्था में एक संरचनागत परिवर्तन ला सकता है और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के विजन पर आधारित ओडीओपी कार्यक्रम प्रधानमंत्री के वोकल फॉर लोकल मंत्र पर पूरी तरह से खरा उतरता दिख रहा है।