नेताजी सुभाष चंद्र बोस को ब्रिटिश सेना की नजरबंदी से बाहर निकाल पहुंचाया था पेशावर तक
नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जिंदगी के कई घटनाओं का साक्षी दून भी रहा है। लेकिन सबसे अहम उन्हें ब्रिटिश सेना की नजरबंदी से निकालने में मदद कर देश की सीमा पार पहुंचाना रहा। इसमें दून के तलवार परिवार के अग्रज भगत राम तलवार की अहम भूमिका रही। इसके कई साक्ष्य भी मिलते हैं। भारतीय जनता पार्टी के मीडिया संपर्क विभाग के प्रदेश प्रमुख राजीव तलवार ने बताया कि उनके बड़े दादा भगत राम तलवार तत्कालीन समय में किसान नेता होने के साथ पड़ोस के मुल्कों की बार्डर पर अच्छी पकड़ भी रखते थे। यही कारण था कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस को नजरबंदी से बाहर निकालकर पेशावर तक पहुंचाने की जिम्मेदारी भगत राम तलवार ने निभाई थी। तलवार परिवार के ही कुछ लोग पेशावर एवं काबुल में रहते थे, जहां नेताजी वेश बदलकर पहुंचे थे। यहां करीब दो महीने बोस को गूंगे बनकर रहना पड़ा, क्योंकि उन्हें स्थानीय भाषा नहीं आती थी। यहीं से बोस एवं हिटलर के बीच संवाद हुआ, जिसके बाद बोस जर्मनी के लिए रवाना हो गए।
मौत से जुड़े विवाद से भी नाता
देहरादून से नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मौत के विवाद का भी नाता है। नेताजी की मौत की जांच के लिए गठित जस्टिस मुखर्जी आयोग ने अपनी रिपोर्ट में देहरादून के स्वामी शरदानंद का जिक्र किया था। कई व्यक्तियों का मानना है कि स्वामी के वेश में नेताजी ही दून में अपना डेरा डाले हुए थे। हालांकि, उन्हीं के कुछ शिष्यों का मानना है कि स्वामी सुभाष चंद्र बोस नहीं थे। राज्य अभिलेखागार के निदेशक वीरेंद्र सिंह ने बताया कि अभिलेखागार में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जीवन व आजाद हिंद फौज से संबंधित कई दुर्लभ अभिलेख मौजूद हैं।
इनमें वह पत्र भी शामिल है, जिसमें नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने सेक्रेटरी ऑफ स्टेट फॉर इंडिया को आइसीएस से इस्तीफे के लिए भेजा था। हालांकि, यह पत्र एवं फोटो मूल प्रति न होकर कॉपी है। इसमें नेताजी ने लिखा है कि वह अपना नाम प्रशिक्षु की सूची से हटवाना चाहते हैं। अंग्रेजी में लिखे इस पत्र में नेताजी ने लिखा है कि वह अगस्त 1920 में हुई खुली प्रतियोगिता में चुने गए थे। अब तक उन्हें सौ पाउंड मिल चुके हैं। जैसे ही उनका इस्तीफा स्वीकार होगा वह सारी रकम लौटा देंगे। यह पत्र 24 नवंबर 1921 को लिखा गया था। ऐसे ही कुछ फोटो भी यहां मौजूद हैं।
आजाद हिंद फौज में करीब 60 लोग थे शामिल
नेताजी सुभाष चंद्र बोस सोसायटी के सचिव दिगंबर नेगी ने बताया कि आजाद हिंद फौज में उत्तराखंड से करीब 60 लोग शामिल थे। वह बताते हैं कि पेशावर कांड के नायक माने जाने वाले वीर सिंह गढ़वाली एवं राजा महेंद्र प्रताप को नेताजी की आजाद हिंद फौज की प्रेरणा माना जाता है। कुछ व्यक्तियों का यह भी मानना है कि वर्तमान समय में जहां नगर निगम परिसर है, वहां कभी मैदान हुआ करता था। जहां एक बार नेताजी ने जनता को संबोधित भी किया था।