दिल्ली : सिसोदिया ने कहा, नई शिक्षा नीति के बुनियादी सिद्धांत अच्छे, लागू कैसे हो स्पष्ट नहीं

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केंद्र सरकार ने नई शिक्षा नीति घोषित कर दी है। हर राज्य इसका अपने-अपने हिसाब से आकलन कर रहा है। शिक्षा क्षेत्र में बुनियादी बदलाव लाने वाली और अपने बजट का सबसे बड़ा हिस्सा इस क्षेत्र पर खर्च करने वाली दिल्ली सरकार भी इस मसले में अपवाद नहीं है। उपमुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया बड़ी बेबाकी से कहते हैं कि नीति के बुनियादी सिद्धांत तो बेहतर हैं, लेकिन इसे लागू करने की कोई कार्ययोजना केंद्र ने नही पेश की है। वहीं, दिल्ली सरकार हैप्पीनेस करिकुलम समेत दूसरी कई योजनाएं पहले ही लागू कर चुकी है। अमर उजाला संवाददाता रश्मि शर्मा  ने नई शिक्षा नीति पर उमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने विस्तार से बात की। पेश हैं प्रमुख अंश….

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को आप कैसे देखते हैं?
नई शिक्षा नीति के बुनियादी सिद्धांत अच्छे हैं, लेकिन यह लागू कैसे हो इसको लेकर स्पष्टता नहीं है। नीति में जिन सुधारों की बात की गई है उन्हें कैसे हासिल करना है उस पर कंफ्यूजन है। इस पॉलिसी पर राष्ट्रव्यापी चर्चा होनी जरूरी थी। इसमें चरित्र निर्माण की बात की गई है लेकिन वह कैसे होगा यह नहीं बताया गया।

पॉलिसी में मातृभाषा में शिक्षा देने के कदम को कैसा मानते हैं?
इस पॉलिसी में अच्छी बात यह है कि पांचवीं तक मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा में पढ़ाई होगी। इससे छात्र के लिए कोई भी देशी-विदेशी भाषा सीखना आसान हो जाएगा। मातृभाषा में शिक्षा देना एक स्वागत योग्य कदम है।
क्या प्राइवेट स्कूल मातृभाषा में शिक्षा उपलब्ध करा पाएंगे?
मातृभाषा में फाउंडेशन स्तर की शिक्षा अच्छा कदम है। लेकिन इसे थोपना नहीं चाहिए। इसे स्कूल पर छोड़ना चाहिए। यह स्कूल-स्कूल पर निर्भर करना चाहिए। हालांकि सरकार को अपने इस कदम को प्रमोट करना चाहिए जिससे कि अभिभावक व स्कूल आश्वस्त हों। केंद्र सरकार को राष्ट्रीय स्तर पर रिसर्च कराना चाहिए। नीति में लचीलापन जरूरी है।

बारहवीं बोर्ड की परीक्षा, फिर स्नातक तक प्रवेश के लिए एनटीए से एक परीक्षा कराने का औचित्य ठीक लगता है?
यदि स्नातक स्तर में दाखिले के लिए एनटीए से टेस्ट कराना है तब बारहवीं बोर्ड की परीक्षा का क्या औचित्य है, इस पर विचार करना चाहिए। बच्चा तो परीक्षाओं में उलझ कर रह जाएगा। प्रवेश के लिए बच्चे के प्रदर्शन को देखना है तो सिर्फ एनटीए से परीक्षा करा लो।

उच्च शिक्षा के लिए एनटीए परीक्षा कराए तो बारहवीं बोर्ड खत्म कर देना चाहिए?
बोर्ड खत्म न करके बोर्ड ही बच्चे का सतत मूल्यांकन करे। अमेरिका में 12वीं के बच्चे का शुरू से ही मूल्यांकन किया जाता है। दूसरे देश बच्चों से बोर्ड एग्जाम नहीं दिला रहे। बोर्ड सतत मूल्यांकन करें। केवल साल में एक बार बोर्ड एग्जाम न हो जिसको लेकर बच्चों में हौव्वा रहता है। बोर्ड के पास मैकेनिज्म होना चाहिए कि बच्चे का मूल्यांकन होता रहे।

क्या दिल्ली सरकार बच्चे के सतत मूल्यांकन के लिए प्रयास कर रही है?
हम बच्चे के सतत मूल्यांकन के लिए दिल्ली का अलग बोर्ड बना रहे हैं। इस बोर्ड के माध्यम से जब-जब जो पढ़ाया जा रहा है उसका मूल्यांकन कर शिक्षक को बताते रहेंगे।

सीबीएसई और दिल्ली बोर्ड से कंफ्यूजन नहीं होगा?
राज्यों में दो बोर्ड होते है, हम कुछ स्कूलों में यह बोर्ड शुरू करेंगे। जब यह सुचारू रूप से कार्य करना शुरू कर देगा तो अन्य स्कूल इससे जुड़ते जाएंगे। इसके लिए कमिटी बना दी गई है जो कि कार्य कर रही है। अगले सेशन से यह बोर्ड शुरू करने की उम्मीद है। प्राइवेट स्कूल यदि जुड़ना  चाहेंगे तो उनसे पूछा जाएगा।

संपूर्ण राष्ट्रीय शिक्षा नीति में क्या होना चाहिए था?
ओवर ऑल पॉलिसी में एक लाइन होनी चाहिए कि भारत अब यह तय करता है कि हम अपने सब बच्चों को सरकारी स्कूलों में अच्छी शिक्षा की गांरटी देंगे। इसके लिए एक तय समय निश्चित किया जाता।

क्या विदेशी संस्थानों व विश्वविद्यालयों को बुलाने से निजीकरण को बढ़ावा नहीं मिलेगा?
उच्च शिक्षा में विदेशी विवि को बुलाना अच्छा है। अभी भी देश से हॉवर्ड पढ़ने जाते हैं। हावर्ड जाने वाले बच्चे फिर यही पढ़ पाएंगे। बाहर की यूनिवसिर्टी को मौका देने से प्रोफेशनलिज्म बढ़ेगा। हमारे विश्वविद्यालय भी गुणवत्ता पर ध्यान दे पाएंगे।

दिल्ली सरकार बीते छह सालों में सबसे ज्यादा खर्च शिक्षा पर कर रही है। क्या कोरोना काल में इसमें कटौती हो सकती है।
इससे कोई इंकार नहीं कर सकता कि संकट बड़ा है। सरकारी राजस्व में तेजी से गिरावट आई है। सरकार इस दिशा में सुधार करने की कोशिश कर रही है। फिर भी, कितना हो सकेगा, यह कह सकना संभव नहीं। इससे हर क्षेत्र के बजटीय आवंटन में कमी आएगी। शिक्षा क्षेत्र भी इसमें शामिल है। बावजूद इसके तुलनात्मक रूप से शिक्षा का बजट ज्यादा रहेगा। सरकार अपनी योजनाओं को बेपटरी नहीं होने देगी।

 

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