संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में गिरा रूस का प्रस्ताव, भारत समेत 13 देशों ने बनाई दूरी

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 यूक्रेन में रूस के कारण पैदा हुए मानवीय संकट को लेकर मसौदा प्रस्ताव पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में बुधवार को हुए मतदान में भारत समेत 13 सदस्य देशों ने हिस्सा नहीं लिया। इसके बाद यह प्रस्ताव यूएनएससी में विफल रहा। प्रस्ताव में रूस और यूक्रेन के बीच राजनीतिक वार्ता, बातचीत मध्यस्थता और अन्य शांतिपूर्ण तरीकों से तत्काल शांतिपूर्ण समाधान का आग्रह किया गया था।

रूस ने 15 सदस्य देशों के सामने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अपने मसौदा प्रस्ताव पर वोट देने का आह्वान किया था। इसमें मांग की गई थी कि मानवीय संकट को देखते हुए महिलाओं और बच्चों समेत कमजोर परिस्थियों में रह रहे नागरिकों को पूरी तरह से संरक्षित किया जाए। इसमें कहा गया कि नागरिकों की सुरक्षा, स्वैच्छिक और निर्बाध निकासी को सक्षम बनाने के लिए बातचीत के जरिए सीजफायर का आह्वान करता है और संबंधित पक्षों को इस उद्देश्य के लिए मानवीय ठहराव पर सहमत होने की आवश्यकता को रेखांकित करता है।

ब्रिटेन के संयुक्त राष्ट्र के राजदूत बारबरा वुडवर्ड ने कहा, ‘अगर रूस मानवीय स्थिति की परवाह करता है, तो वह बच्चों पर बमबारी करना बंद कर देगा और उनकी घेराबंदी की रणनीति को समाप्त कर देगा। लेकिन उसने ऐसा नहीं किया।’

चीन इस प्रस्ताव के पक्ष में अपना वोट देकर रूस का समर्थन करने वाला एकमात्र देश है। उसने कहा कि यूएनएससी को यूक्रेन में मानवीय स्थिति को लेकर अपनी भूमिका निभानी चाहिए। सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव के पक्ष में कम से कम नौ मतों की आवश्यकता होती है और रूस, चीन, ब्रिटेन, फ्रांस या अमेरिका द्वारा कोई वीटो नहीं अपनाया जाना चाहिए।

रूसी गैस चाहिए तो रूबल में देना होगा मूल्य

यूक्रेन युद्ध के चलते प्रतिबंधों की मार झेल रहे रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने गैर मित्र देशों को प्राकृतिक गैस की बिक्री के लिए नई शर्त रखी है। कहा है कि जिसे रूसी गैस चाहिए, उसे रूसी मुद्रा रूबल में मूल्य चुकाना होगा। यह व्यवस्था लागू करने के लिए रूस सरकार कार्य कर रही है। जाहिर है इससे रूसी मुद्रा को अंतरराष्ट्रीय बाजार में महत्व मिलेगा। अभी तक यह व्यापार अमेरिकी डालर में होता है। विदित हो कि यूरोप ज्यादातर देश रूसी गैस आपूर्ति पर आश्रित हैं। लेकिन अब वे यूक्रेन मसले पर अमेरिका के साथ मिलकर रूस पर प्रतिबंध लगा रहे हैं। रूस की नई व्यवस्था से उन देशों के लिए मुश्किलें पैदा होंगी।

 

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