अफगानिस्तान: आजादी दिवस पर राष्ट्रीय झंडा लहराती भीड़ पर तालिबान ने बरसाईं गोलियां, तीन की मौत

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तालिबान ने बृहस्पतिवार को अफगानिस्तान का स्वतंत्रता दिवस दुनिया की अहंकारी ताकत अमेरिका को हराने की घोषणा करके मनाया। हालांकि अब उसके सामने देश की सरकार को चलाने से लेकर सशस्त्र विरोध झेलने की संभावना जैसी कई चुनौतियां खड़ी हो रही हैं। अफगानिस्तान के एटीएम में नकदी खत्म हो गई है और आयात पर निर्भर इस देश के 3.80 करोड़ लोगों के सामने खाद्य संकट पैदा हो गया है।

अफगानिस्तान में बृहस्पतिवार को ब्रिटिश शासन का अंत करने वाली 1919 की संधि की याद में स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है। इस मौके पर तालिबान ने कहा, यह सौभाग्य की बात है कि हम ब्रिटेन से आजादी की आज वर्षगांठ मना रहे हैं।

इसके साथ ही हमारे जिहादी प्रतिरोध के परिणाम स्वरूप दुनिया की एक और अहंकारी ताकत अमेरिका असफल हुआ और उसे अफगानिस्तान की पवित्र भूमि से बाहर जाने पर मजबूर होना पड़ा।

सरकार चलाना एक चुनौती
माना जा रहा है कि तालिबान के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग के बिना सरकार चलाना बड़ी चुनौती होगी। इस बीच, अफगानिस्तान के पंजशीर घाटी में पहुंचे विपक्षी नेता ‘उत्तरी गठबंधन’ के बैनर तले सशस्त्र विरोध करने को लेकर चर्चा कर रहे हैं। यह स्थान ‘उत्तरी गठबंधन’ के लड़ाकों का गढ़ है, जिन्होंने 2001 में तालिबान के खिलाफ अमेरिका का साथ दिया था। यह एकमात्र प्रांत है जो तालिबान के हाथ नहीं आया है।

तालिबान ने अभी तक उस सरकार के लिए कोई योजना पेश नहीं की है, जिसे चलाने की वह इच्छा रखता है। उसने केवल इतना कहा है कि वह शरिया या इस्लामी कानून के आधार पर सरकार चलाएगा।

खाद्य एजेंसी ने दी भुखमरी की चेतावनी
अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र खाद्य एजेंसी के प्रमुख ने कहा है कि देश में तालिबान के कब्जे के बाद वहां एक मानवीय संकट पैदा हो रहा है, जिसमें 1.4 करोड़ लोगों के सामने भुखमरी की गंभीर समस्या खड़ी हो गई है।

विश्व खाद्य कार्यक्रम के लिए देश की निदेशक मेरी एलेन मैकग्रार्टी ने कहा कि अफगानिस्तान के संघर्ष, तीन वर्षो में देश के सबसे बुरे सूखे और कोविड-19 महामारी के सामाजिक व आर्थिक प्रभाव ने पहले से ही देश को तबाही की ओर धकेल दिया है।

उन्होंने कहा, देशकी 40 फीसदी से ज्यादा फसल नष्ट हो गई है और सूखे से पशुधन भी तबाह हो चुका है। तालिबान के आगे बढ़ने के साथ-साथ सैकड़ों-हजारों लोग विस्थापित हो गए हैं और सर्दियां भी आने वाली है। ऐसे में वहां भोजना पहुंचाने की दौड़ जारी है जहां इसकी सर्वाधिक जरूरत है।

हथियारों के दम पर अफगानिस्तान पर अपना नियंत्रण कर लेने के बावजूद तालिबान को विरोध का सामना करना पड़ रहा है। अफगान नागरिकों ने बृहस्पतिवार को अपने देश के आजादी दिवस पर काबुुल समेत कई शहरों में राष्ट्रीय झंडे लहराकर और तालिबान के सफेद झंडे को फाड़कर विरोध जताया।

तालिबान ने भीड़ पर गोलियां बरसा दीं
तालिबान आतंकियों ने पूर्वी अफगानिस्तान के कुनार प्रांत की राजधानी असदाबाद में विरोध जता रही भीड़ पर गोलियां बरसा दीं। इस फायरिंग में कम से कम तीन लोगों की मौत हो गई। एक प्रत्यक्षदर्शी मोहम्मद सलीम ने फायरिंग के बाद भगदड़ में भी कई लोगों की मौत का दावा किया है।

इससे पहले बुधवार को भी जलालाबाद में झंडा लेकर विरोध जता रही भीड़ पर तालिबान आतंकियों ने फायरिंग की थी, जिसमें 3 लोगों की मौत हो गई थी। एक मीडिया रिपोर्ट में असदाबाद और एक अन्य पूर्वी शहर खोस्त में बुधवार को भी प्रदर्शनकारियों पर फायरिंग किए जाने का दावा किया गया है। प्रदर्शनकारियों ने बृहस्पतिवार को जलालाबाद में दोबारा कई जगह विरोध जताया। साथ ही पाकतिया प्रांत के भी एक जिले में प्रदर्शन देखने को मिले।

अफगानिस्तान को 19 अगस्त, 1919 को ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता मिलने के चलते इसे आजादी दिवस के तौर पर मनाया जाता है। बृहस्पतिवार को सोशल मीडिया पर राजधानी काबुल की सड़कों की एक वीडियो क्लिप पोस्ट की गई। इस क्लिप में भी पुरुषों और महिलाओं की भीड़ काले, लाल व हरे राष्ट्रीय झंडों को लहराते हुए ‘हमारा झंडा, हमारी पहचान’ के नारे लगाकर विरोध जताती दिखी।

एक प्रत्यक्षदर्शी के मुताबिक, मौके पर मौजूद तालिबान आतंकियों ने हवा में फायर कर भीड़ को तितर-बितर किया। एक अन्य जगह के वीडियो में एक महिला अपने कंधों पर अफगानिस्तान का झंडा लपेटकर हथियारबंद तालिबान लड़ाकों के सामने ‘अल्लाह सबसे बड़ा है’ के नारे लगाकर विरोध जताती दिखाई दी। इसी तरह के प्रदर्शन तकरीबन पूरे देश में किए गए।
तालिबान संकट से चमका पाकिस्तानी मानव तस्करों का धंधा
अफगानिस्तान में तालिबान के नियंत्रण से पैदा हुए संकट ने उसकी सीमा से सटे क्षेत्रों में सक्रिय पाकिस्तान के मानव तस्करों का धंधा चमका दिया है। तालिबान के शासन से बचने के लिए किसी भी कीमत पर अफगानिस्तान से गोपनीय तरीके से बाहर जाने की कोशिश कर रहे लोग इन मानव तस्करों को मुंहमांगे दाम चुका रहे हैं।

अफगानिस्तान से सटी चमन-स्पिन बोल्देक सीमा के करीब एक छोटे कस्बे से अपना गिरोह संचालित करने वाले हमीद गुल अब तक 1000 से ज्यादा लोगों को दूसरे देशों में भेज चुके हैं। गुल के मुताबिक, तालिबान के काबुल में घुसने के बाद हमारा धंधा जोर पकड़ गया है।

हम पिछले सप्ताह से अब तक 1000 से ज्यादा लोगों को सीमा पार कराकर पाकिस्तान में ला चुके हैं। हालांकि उन्होंने यह बताने से इनकार कर दिया कि अफगान नागरिकों को पाकिस्तान में प्रवेश कराने के बदले वह क्या कीमत वसूल रहे हैं। गुल के अलावा इस काम में सक्रिय अन्य मानव तस्करों ने मीडिया से मिलने से इनकार कर दिया, लेकिन गुल ने इस बात की पुष्टि की है कि कई अन्य गिरोह सीमावर्ती कस्बों में यह काम कर रहे हैं।

गुल ने कहा, सीमा पार आने के लिए बेताब लोग इससे डरे हुए हैं कि तालिबान शासन में क्या होगा और वे किसी भी तरीके से अफगानिस्तान से बाहर निकलना चाहते हैं। इसके लिए वे हमारी किसी भी मांग को पूरा करने के लिए तैयार हो रहे हैं।

हालांकि क्वेटा में एक साहित्यिक पत्रिका प्रकाशित करने वाले डॉ. शाह मुहम्मद मारी का दावा है कि अफगान नागरिकों की मानव तस्करी नई बात नहीं है और यह तालिबान के कब्जा करने से पहले भी जारी थी। उन्होंने 55 हजार से ज्यादा अफगान नागरिकों के अकेले इस साल में पाकिस्तान पहुंचने का दावा किया है, जिनमें अधिकतर औरतें और बच्चे हैं। उन्होंने कहा कि इनमें से ज्यादातर अल्पसंख्यक हजारा शिया मुस्लिम समुदाय या ताजिक समुदाय से जुड़े हैं।

इन क्षेत्रों में ज्यादा सक्रियता
मानव तस्करी रैकेट की जानकारी रखने वाले एक सूत्र के मुताबिक, ज्यादातर गिरोह अफगानिस्तान से सटे अशांत बलोचिस्तान प्रांत के चमन, चाघी और बदानी क्षेत्र में सक्रिय हैं। ये मानव तस्कर अफगान नागरिकों को पाकिस्तान में प्रवेश देने के लिए अपने वाहनों का ही उपयोग करते हैं और बहुत ही गोपनीय तरीके से यह काम किया जाता है।

क्वेटा और कराची में पहुंच रहे अफगान
सूत्र के मुताबिक, अवैध शरणार्थी के तौर पर पाकिस्तान में सुरक्षित पहुंचने के बाद ज्यादातर अफगान नागरिक क्वेटा या कराची पहुंच रहे हैं, जहां पहले से काम कर रहे उनके रिश्तेदार उनकी मदद कर रहे हैं।

सिंध पुलिस के आतंक विरोधी विभाग में कार्यरत एक अधिकारी ने भी नाम नहीं छापने पर अफगान नागरिकों के बड़ी संख्या में पिछले कुछ दिन में कराची पहुंचने की पुष्टि की है। उन्होंने कहा, कराची से जुड़े राष्ट्रीय राजमार्ग पर पिछले कुछ साल में एक अफगान गांव ही बन गया है, जबकि सोहराब गोथ में राजमार्ग से कराची के लिए निकलने वाले रास्ते के करीब कई छोटी-छोटी अफगान बस्तियां बस गई हैं।
तालिबान के कब्जे में अब 3 लाख करोड़ डॉलर के खनिज
तालिबान के अफगानिस्तान में 20 साल बाद दोबारा सत्ता हासिल करने के बाद अब उनके नियंत्रण में देश की धरती में मौजूद करीब 3 लाख करोड़ डॉलर कीमत के खनिज भी आ गए हैं। इस रकम की विशालता का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि भारत की मौजूदा संपूर्ण अर्थव्यवस्था का आकार 3 लाख करोड़ डॉलर के बराबर है।

2010 में अफगानिस्तान के तत्कालीन खनन मंत्री ने एक रिपोर्ट में देश में मौजूद खनिज भंडारों का उस समय के अंतरराष्ट्रीय दामों के हिसाब से आकलन करते हुए 1.3 लाख करोड़ डॉलर के बराबर अनुमानित कीमत मानी थी।

अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों का कहना है कि पिछले 11 साल में खनिज पदार्थों के दामों में आई तेजी के बाद इसकी कीमत अब 3 लाख करोड़ डॉलर के बराबर हो चुकी है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह कीमत और भी ज्यादा हो सकती है, क्योंकि कोरोना वायरस महामारी के कहर से उबरने के बाद अब वैश्विक अर्थव्यवस्था में तांबे से लेकर लिथियम तक, हर खनिज का दाम ऊपर चढ़ रहा है।

2010 में अमेरिकी रक्षा मंत्रालय ने एक आंतरिक मेमो में अफगानिस्तान को ‘लिथियम का सऊदी अरब’ करार दिया था। बैटरी बनाने में काम आने वाला यह दुर्लभ खनिज मौजूदा समय में इलेक्ट्रिक वाहनों की बढ़ती मांग को देखते हुए पेट्रोलियम से भी ज्यादा कीमती हो गया है।

इन खनिज का बड़ा भंडार है अफगानिस्तान
तांबा, सोना, तेल, प्राकृतिक गैस, यूरेनियम, बॉक्साइट, कोयला, लौह अयस्क, लिथियम, क्रोमियम, सीसा, जिंक, रत्न व कीमती पत्थर, सल्फर, ट्रैवरटाइन, जिप्सम व मार्बल पत्थर।

ऐसा है खनिज भंडार
खनिज    भंडार    अनुमानित कीमत
तांबा    06 करोड़ टन    600 अरब डॉलर
लौह अयस्क    2.2 अरब टन    350 अरब डॉलर
सोना    2700 किग्रा    170 अरब डॉलर
तेल    1.6 अरब बैरल    107 अरब डॉलर
गैस    16 ट्रिलियन क्यूबिक फीट    अनुमानित नहीं
(स्रोत : अफगान खनन व पेट्रोलियम मंत्रालय की रिपोर्ट-2019)

 

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