अफगानिस्‍तान में भारत की कूटनीतिक पहल, पाक-चीन की चिंता बढ़ी, जानें-कैसे रहे हैं भारत-अफगान संबंध

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मौजूदा अफगानिस्‍तान सरकार और भारत के बीच संबंध बेहद मजबूत और मधुर हैं। अफगानिस्तान के कई शीर्ष नेता समय-समय पर भारत के दौरे पर आते रहे हैं। इससे दोनों देशों के बीच संबंधों में गर्मजोशी का पता चलता है। इतना ही नहीं, भारत-अफगानिस्तान में अरबों डॉलर लागत वाले कई मेगा प्रोजेक्ट्स पूरे कर चुका है और कुछ पर काम चल रहा है। दूसरी और अफगानिस्‍तान सरकार पाकिस्‍तान पर अपने यहां आतंकवाद को प्रायोजित करने का आरोप लगाता रहा है। अलबत्‍ता पाकिस्‍तान और तालिबान के संबंध काफी मधुर हैं। अमेरिकी सैनिकों की वापसी के समय अफगानिस्‍तान में राजनीतिक अस्थिरता का दौर शुरू हो गया है। अफगानिस्‍तान में तालिबान का प्रभाव बढ़ रहा है। ताल‍िबान के बढ़ते प्रभुत्‍व के कारण पाक अंदर से गदगद है, लेकिन भारत की चिंताएं बढ़ गई हैं।

1980 के दशक में दोनों देशों के संबंधों को एक नई पहचान मिली

प्रो. हर्ष पंत का कहना है कि अफगानिस्तान दक्षिण एशिया में भारत का अहम सहयोगी और दोस्‍त है। दोनों मुल्‍कों के मध्‍य द्विपक्षीय संबंध पारंपरिक रूप से मजबूत और दोस्ताना रहे हैं। दरअसल, 1980 के दशक में दोनों देशों के संबंधों को एक नई पहचान मिली, लेकिन 1990 के अफगान-गृहयुद्ध और वहां तालिबान के सत्ता में आने के बाद से भारत और अफगानिस्‍तान के संबंध कमजोर होते चले गए। दोनों देशों के संबंधों को एक बार फिर तब मजबूती मिली, जब 2001 में तालिबान सत्ता से बाहर हो गया। इसके बाद अफगानिस्तान के लिए भारत मानवीय और पुनर्निर्माण सहायता का सबसे बड़ा क्षेत्रीय प्रदाता बन गया है।

अफगानिस्तान में सबसे अधिक लोकप्रिय देश भारत

प्रो. पंत ने बताया कि मौजूदा वक्त में अफगानिस्तान में सबसे अधिक लोकप्रिय देश भारत है। इसकी बड़ी वजह है कि अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में भारत का बड़ा योगदान है। अफगानिस्‍तान की विभिन्न निर्माण परियोजनाओं भारत ने निवेश कर रखा है। भारत ने अब तक अफगानिस्तान को लगभग तीन अरब डॉलर की सहायता दी है। इसके तहत अफगानिस्‍तान में संसद भवन, सड़कों और बांध आदि का निर्माण हुआ है। कई मानवीय व विकासशील परियोजनाओं पर अभी भी काम कर रहा है। दोनों देश इस बात पर राजी हैं कि अफगानिस्तान में शांति और स्थायित्व को प्रोत्साहित करने और हिंसक घटनाओं पर तत्काल लगाम लगाने के लिए ठोस और सार्थक कदम उठाए जाने चाहिए।

अफगानिस्‍तान के विकास के लिए भारत ने उठाए कदम

दरअसल, दोनों देश 116 सामुदायिक विकास परियोजनाओं पर काम करने के लिए राजी हुए हैं, जिन्हें अफगानिस्तान के 31 प्रांतों में क्रियान्वित किया जाएगा। इनमें शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, सिंचाई, पेयजल, नवीकरणीय ऊर्जा, खेल अवसंरचना और प्रशासनिक अवसंरचना के क्षेत्र शामिल हैं। इसके तहत काबुल के लिए शहतूत बांध और पेयजल परियोजना पर काम शुरू किया जाएगा। इसके अलावा अफगान शरणार्थियों के पुनर्वास को प्रोत्साहित करने के लिए नानगरहर प्रांत में कम लागत पर घरों का निर्माण किया जाना प्रस्तावित है। बामयान प्रांत में बंद-ए-अमीर तक सड़क संपर्क के निर्माण में भारत मदद कर रहा है। चारिकार शहर के लिये जलापूर्ति नेटवर्क और मजार-ए-शरीफ में पॉलीटेक्नीक के निर्माण में भी भारत सहयोग दे रहा है। कंधार में अफगान राष्ट्रीय कृषि विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए भी भारत ने सहयोग का भरोसा दिलाया है।

भारत की एक बड़ी कूटनीतिक चुनौती

प्रो. पंत ने कहा कि विकास के मोर्चे पर भारत अफगानिस्तान की लगातार मदद कर रहा है, लेकिन सुरक्षा के मोर्चे पर भारत ने अभी तक कोई कदम नहीं उठाया है। अमेरिकी सेना का अफगानिस्तान में रहना वहां की सुरक्षा से जुड़ा मुद्दा है। अमेरिकी सेना यदि अफगानिस्तान से चली जाती है तो वहाँ तालिबानियों का प्रभुत्व कायम हो जाने की आशंका है। ऐसे में भारत को अपने द्वारा वित्तपोषित विकास परियोजनाओं की भी चिंता होना स्वाभाविक है। अगर अफगानिस्तान की सेना कमजोर पड़ती है और तालिबान प्रभावी हो जाता है तो अफगानिस्तान में भारत की सारी मेहनत बेकार हो सकती है। इन हालातों से निपटना भारत की एक बड़ी कूटनीतिक चुनौती है।

भारत की कूटनीतिक पहल से चिंतत हुए पाक और चीन

उन्‍होंने कहा कि क्षेत्रीय सहयोग के लिए अफगानिस्तान में शांति कायम होना बेहद जरूरी है। प्रो. पंत ने कहा कि एक पड़ोसी के रूप में भारत को अफगानिस्तान का साथ मिलता रहे, इसके लिए अफगानिस्तान में विकास कार्यों के अलावा भारत को अफगानिस्तान सहित अन्य पड़ोसी देशों के साथ भी क्षेत्रीय सहयोग बढ़ाने की जरूरत है। इसके लिए भारत ने अपने कूटनीतिक प्रयास को तेज किया है। भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर की ईरान और रूस यात्रा इस बात की ओर संकेत करती है कि भारत ने इस दिशा में काम शुरू कर दिया है। अफगानिस्‍तान को लेकर भारत को तुर्की के साथ भी संवाद तेज करना चाहिए। उन्‍होंने कहा कि अमेरिकी सेना की वापसी के बाद अफगानिस्‍तान में तुर्की की बड़ी भूमिका होगी। उन्‍होंने कहा कि भारत चाहे तो तालिबान के साथ बातचीत की प्रक्रिया को आगे भी बढ़ा सकता है। नवंबर, 2018 में भारत की तरफ से दो रिटायर्ड राजनयिकों का तालिबान से बातचीत के लिए मास्को जाना इसी का एक पहलू है। इससे अफगानिस्तान की स्थाई सरकार में तालिबान की भूमिका तय की जा सकती है। लेकिन इस मुद्दे पर भारत को कोई भी कदम बेहद सोच-समझ कर उठाना होगा। उन्‍होंने कहा कि अफगानिस्तान में भारत की भूमिका को सीमित करने की नीति पर पाकिस्तान लंबे समय से काम कर रहा है। भारत पाकिस्तान को अलग-थलग करने के लिए सार्क के बजाय अन्‍य क्षेत्रीय समूहों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। क्षेत्रीय सहयोग बढ़ाने के लिये भारत को इसी तरह कूटनीतिक स्तर पर अपनी सक्रियता बनाए रखनी होगी। उन्‍होंने कहा कि जिस प्रकार अफगानिस्तान में पाकिस्तान का स्थायी एजेंडा वहां अपनी सामरिक पहुंच को बनाना है, ठीक उसी प्रकार भारत का स्थाई लक्ष्य भी साफ है। भारत का प्रयास रहना चाहिए कि अफगानिस्तान के विकास में लगे करोड़ों डॉलर व्यर्थ न जाने पाएं। इसके अलावा काबुल में मित्र सरकार बनी रहे। ईरान-अफगान सीमा तक निर्बाध पहुंच बरकरार रहे। अफगानिस्‍तान में सभी वाणिज्य दूतावास बराबर काम करते रहें। उन्‍होंने कहा कि इस एजेंडे की सुरक्षा के लिए भारत को अपनी कूटनीति में कुछ बदलाव करने भी पड़ें तो उसे पीछे नहीं हटना चाहिए, क्योंकि यह समय की मांग है।

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