उत्तराखंड में रोडवेज को 18 साल में 520 करोड़ का घाटा, उत्तर प्रदेश से अलग होने के बाद एक बार भी मुनाफे में नहीं गया निगम
उत्तर प्रदेश से पृथक होने के तीन साल बाद 31 अक्टूबर 2003 को बना उत्तराखंड परिवहन निगम इस वक्त 520 करोड़ रूपये के घाटे में है। हैरानी वाली बात यह है कि अपने गठन के इन 18 साल में एक बार भी परिवहन निगम लाभ में नहीं गया। बीते 18 साल में सबसे बड़ा घाटा उसे कोरोना काल के कारण वर्ष 2020-21 में हुआ, जो 161 करोड़ रूपये है।
सिर्फ 2007-08 वर्ष ऐसा रहा, जब निगम को सबसे कम यानी महज 31 लाख रूपये का घाटा हुआ। वर्तमान में 520 करोड़ के घाटे तले दब चुका परिवहन निगम पांच माह से कर्मचारियों को तनख्वा तक नहीं दे पाया है। सरकार भी मदद करने के लिए हाथ खड़े कर चुकी है। ऐसे में यह घाटा निगम कैसे दूर करेगा, जवाब न निगम के पास है, न सरकार के।
हर माह वेतन पर 19 करोड़ खर्च
परिवहन निगम को हर माह वेतन के लिए 19 करोड़ रूपये की जरूरत है। इसमें श्रेणी ‘गÓ एवं ‘घÓ के कार्मिकों पर 17 करोड़ 53 लाख 81 हजार 710 रूपये का वेतन खर्च आता है, जबकि ‘कÓ एवं ‘खÓ अधिकारी वर्ग पर 41 लाख 85 हजार 497 रूपये का खर्च आता है। इस 19 करोड़ रूपये के हर माह खर्च में सर्वाधिक रकम ‘गÓ एवं ‘घÓ श्रेणी के नियमित कर्मचारियों पर खर्च होती है, जो 13 करोड़ 14 लाख 15 हजार 186 रूपये है। संविदा कर्मियों पर 1.12 करोड़, जबकि विशेष श्रेणी पर 3.20 करोड़ रूपये खर्च आता है।
लॉक डाउन में 54 करोड़ का घाटा
पिछले साल कोरोना के कारण 22 मार्च से लगे लॉक डाउन में रोडवेज को करीब 54 करोड़ रूपये का घाटा हुआ। अप्रैल में उसे 23 करोड़, मई में सात करोड़ व जून में 23 करोड़ का घाटा हुआ। इस दौरान आय 20 करोड़ रूपये हुई, जो प्रवासियों को लाने व ले जाने के कारण सरकार ने दिए, जबकि कुल खर्च करीब 75 करोड़ का रहा। इसके अलावा इस वर्ष भी अप्रैल व मई में दोबारा संक्रमण बढऩे पर बसों का संचालन थमने से रोडवेज को लगभग 42 करोड़ की चपत लगी है। अप्रैल में उसे आठ करोड़ और मई में 34 करोड़ का घाटा हुआ। जून का घाटा इसके अलग आएगा।
साल-दर-साल घाटा
31 अक्टूबर 2003 से 31 मार्च 2004 तक रोडवेज को 10 करोड़ का घाटा हुआ। इसके बाद साल 2004-05 में 15 करोड़, 2005-06 में 10 करोड़, 2006-07 में दो करोड़, 2007-08 में 31 लाख, 2008-09 में 14 करोड़, 2009-10 में 11 करोड़ और 2010-11 में 28 करोड़ रूपये घाटा हुआ। इसके अलावा 2011-12 में 26 करोड़, 2012-13 में 25 करोड़, 2013-14 में 37 करोड़, 2014-15 में 34 करोड़, 2015-16 में 10 करोड़, 2016-17 में 19 करोड़, 2017-18 में 23 करोड़, 2018-19 में 44 करोड़, 2019-20 में 47 करोड़ जबकि 2020-21 में 161 करोड़ का घाटा हुआ।
प्रति किमी खर्च ढाई गुना
उत्तर प्रदेश की अपेक्षा उत्तराखंड रोडवेज का प्रति किमी कार्यशाला का खर्च ढाई गुना अधिक बताया जा रहा। इसके अलावा जब 2003 में उत्तराखंड परिवहन निगम बना तो उसके हिस्से 7100 नियमित कर्मचारी आए थे। इनमें पचास फीसद ऐसे थे, जो लगभग 35 से 40 साल की सेवा उत्तर प्रदेश में कर चुके थे। ये उत्तराखंड आते ही अगले दो से तीन साल में सेवानिवृत्त हो गए। इनकी पूरी गे्रच्युटी व अन्य भुगतान उत्तराखंड परिवहन निगम को करने पड़े, जिससे घाटा भी बढ़ता चला गया। उत्तर प्रदेश से केंद्रीय परिसंपत्ति की हिस्सेदारी के बदले उत्तराखंड परिवहन निगम को को जो करीब 600 करोड़ रूपये मिलने हैं, अगर वे मिलते तो यह घाटा खुद दूर हो जाता।
हाईकोर्ट में आज एमडी की पेशी
रोडवेज के घाटे और कर्मचारियों को वेतन नहीं मिलने के मामले में आज हाईकोर्ट में प्रबंध निदेशक आशीष चौहान की वर्चुअल पेशी होनी है। उत्तरांचल रोडवेज कर्मचारी यूनियन की ओर से दाखिल इस मामले में यह चौथे आइएएस की पेशी है। इससे पूर्व उत्तराखंड के परिवहन सचिव व उत्तर प्रदेश के परिवहन आयुक्त समेत केंद्रीय परिवहन सचिव की पेशी भी हो चुकी है।
महाप्रबंधक संचालक दीपक जैन का कहना है कि ‘निश्चित ही उत्तराखंड परिवहन निगम बनने के बाद के 18 साल में घाटा 520 करोड़ रूपये पहुंच गया है। बीते सवा साल में ही निगम को 200 करोड़ से ऊपर घाटा हुआ है। माननीय हाईकोर्ट को पूरी स्थिति से अवगत करा दिया गया है।