दुष्कर्म पीड़िता ने साझा किया दर्द: 22 साल से घुट-घुटकर जी रही थी, आज खुली हवा में सांस ले रही हूं

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22 साल से मैं घुट-घुट कर जी रही थी। इस घटना के बाद से मेरी जिंदगी दुश्वार हो गई थी। घर छूटा, बच्चे छूटे और शायद मैं भी कहीं पीछे छूट गई थी। कई बार ऐसा लगा कि अब न्याय नहीं मिल पाएगा। अब खुली हवा में सांस ले पा रही हूं। यह कहना है ओडिशा की एक दुष्कर्म पीड़िता का। अपने दर्द को साझा करते हुए उन्होंने कहा मेरे साथ जो हुआ उसमें मेरी कोई गलती नहीं थी, लेकिन दुनिया ने मुझे सजा दी। कहीं पर रहने भी नहीं दिया जा रहा था। मेरे घर पर पथराव किया जाता था। ऐसी हालत हो गई कि मां के साथ रहना पड़ा। अब ऐसा लगता है कि मुझे शायद मरने के लिए उतना संघर्ष नहीं करना पड़ता, जितना जीने के लिए करना पड़ा। फिर भी मैंने जीना मंजूर किया। ..और शायद आज 22 साल बाद मुझे उस संघर्ष का फल मिल रहा है।

रांची के मानसिक चिकित्सालय में रखा गया

इस संघर्ष में मुझे परिवार का साथ भी नहीं मिला। आइएफएस पति से तलाक हो गया। मानसिक रूप से विक्षिप्त करार देकर तीन साल तक रांची के मानसिक अस्पताल में रखा गया। मानव अधिकार आयोग से पत्रचार कर किसी तरह बाहर आई, लेकिन तब तक दोनों बेटों की कस्टडी हार चुकी थी।

कई बार समझौते का आया दबाव

आरोपित राजनीतिक रूप से सक्षम थे और इतने सालों में कई बार समझौते का दबाव भी आया, लेकिन मैंने समझौता नहीं किया। मैं तमाम पीड़िताओं से यही कहना चाहूंगी कि इस तरह के आरोपियों के खिलाफ खुद को मजबूत कर इंसाफ की मांग करनी चाहिए। आरोपितों को उम्र कैद या फिर फांसी की सजा मिलनी चाहिए। फांसी मिलने से मुझे ज्यादा खुशी होगी। ओडिशा के बहुचर्चित दुष्कर्म कांड में 22 साल बाद आरोपित बिवन विश्वाल के पकड़े जाने से न सिर्फ दुष्कर्म पीड़िता को न्याय मिलने की आस जगी है, बल्कि देशभर में एक बार फिर सरकारी एजेंसियों में भरोसा जागा है। पीड़िता के साथ बंदूक की नोंक पर चार घंटे तक दुष्कर्म किया गया था।
संघर्ष की दास्तां

जनवरी वर्ष 1999 में ओडिशा में एक बहुचर्चित दुष्कर्म की घटना घटी थी। दुष्कर्म पीड़िता भारतीय वन सेवा के अधिकारी की पत्नी थीं। पीड़िता ने आरोप लगाया था कि तत्कालीन मुख्यमंत्री जेबी पटनायक और उनके मित्र एक पूर्व महाधिवक्ता का भी हाथ है। इस मामले तत्कालीन मुख्यमंत्री को इस्तीफा देना पड़ा था।
ये था मामला
पीड़िता अपने मित्र के साथ कार से जा रही थी। भुवनेश्वर के बाहरी इलाके में तीन लोगों ने उनके साथ जघन्य अपराध किया। 26 जनवरी 1999 को दो आरोपितों को गिरफ्तार कर लिया गया था। दो आरोपियों को 26 जनवरी 1999 को गिरफ्तार कर लिया गया था। उच्च न्यायालय ने मामले की जांच के लिए 26 फरवरी 1999 को जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआइ) को सौंप दी थी। 5 मई 1999 पर आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया था।
लंबी लड़ाई के बाद पीड़िता ने अपना मुकदमा जीत लिया। 29 अप्रैल 2002 पर दिए गए एक फैसले में ओडिशा के खुर्दा के जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने मामले में तीन आरोपियों में से दो प्रदीप साहू और दिरेंद्र मोहंती को आजीवन कारावास और 5,000 रुपये का जुर्माने की सजा सुनाई थी।

पुलिस कमिश्नर सुधांशु षंडगी के अनुसार घटना के बाद बिवन विश्वाल अपना नाम बदलकर मुम्बई चला गया और महाराष्ट्र के आम्बीभैली लोनावाला इलाके में जलंधर स्वांई के नाम से रहने लगा और वहां पर पाइप मिस्त्री के तौर पर काम करने लगा। परिचय-पत्र, आधार कार्ड, पासबुक सब कुछ जलंधर के नाम से ही बनवा लिया था।कब थमेंगे ये अपराध।

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