उत्तराखंड में सरकार को विकास कार्यों के लिए जुटाना होगा अधिक धन

अवस्थापना विकास के लिए बजट पोटली से बहुत कम धनराशि की व्यवस्था में इस बार बदलाव होगा या नहीं, नई सरकार को इस मोर्चे पर अग्निपरीक्षा देनी है। प्रदेश की वित्तीय स्थिति को संभालकर पटरी पर लाना सबसे बड़ी चुनौती है। खर्च किए जा रहे कुल बजट में 32.81 प्रतिशत की हिस्सेदारी अकेले वेतन खर्च की है। विकास कार्यों के लिए धन की पर्याप्त उपलब्धता समस्या बन चुकी है।
राज्य की खुशहाली का बड़ा दारोमदार अवस्थापना विकास कार्यों की गति पर है। इसकी रफ्तार में सबसे बड़ा अड़ंगा गैर विकास मदों में बढ़ा खर्च है। वेतन और पेंशन मद में खर्च में लगातार वृद्धि हो रही है। इस गंभीर स्थिति का अंदाजा इससे लग सकता है कि 2010-11 से लेकर अब तक 10 वर्षों में कर्मचारियों के वेतन-भत्तों पर खर्च 4966 करोड़ से बढ़कर 14951 करोड़, यानी तीन गुना हो चुका है। पेंशन पर खर्च 1142 करोड़ से 6297 करोड़ पहुंच गया है। पेंशन खर्च में वृद्धि साढ़े पांच गुना है।
वेतन-पेंशन पर 21 हजार करोड़ खर्च
2020-21 के पुनरीक्षित अनुमान के मुताबिक राज्य के कुल 40,091 करोड़ राजस्व खर्च में सरकारी कर्मचारियों के वेतन पर 14,951 करोड़ खर्च हुआ। पेंशन भुगतान पर 6297 करोड़ खर्च किए गए। सच्चाई यह है कि उत्तराखंड वेतन पर खर्च करने के मामले में बड़े राज्यों से आगे हैं। उत्तरप्रदेश, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, बंगाल और दिल्ली जैसे राज्य भी अपने कुल खर्च की तुलना में वेतन पर खर्च करने में उत्तराखंड से कहीं पीछे हैं।
बढ़ते कर्ज का संकट
राज्य की ऋण राशि बढ़कर 73478 करोड़ हो चुकी है। ऋण राशि का बड़ा हिस्सा ब्याज के रूप में भुगतान किया जा रहा है। ऋण के ब्याज के रूप में 5475 करोड़ की बड़ी रकम राज्य को चुकानी पड़ रही है। उत्तराखंड में हर व्यक्ति पर तकरीबन 73 हजार रुपये से ज्यादा कर्ज है। कुल सकल घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) का 25 प्रतिशत तक कर्ज रहने की राजकोषीय उत्तरदायित्व एवं बजट प्रबंधन (एफआरबीएम) अधिनियम की सीमा को भी यह 2019-20 में ही लांघ चुका है। अब यह 31 फीसद से ज्यादा हो चुका है। राज्य की आमदनी की तुलना में ये हालत भयावह है।
आमदनी और खर्च में बढ़ा अंतर
वित्तीय वर्ष 2010-11 में राज्य की कर राजस्व के रूप में कुल आमदनी 4405 करोड़ रुपये से बढ़कर 2020-21 में 10791 करोड़ रुपये पहुंची है। यह वृद्धि दर 2.45 फीसद या तकरीबन ढाई गुना है। वहीं कर्ज के ब्याज भुगतान की रफ्तार 3.46 गुना बढ़ी है। 2010-11 में यह सिर्फ 1480 करोड़ रुपये थी। 2020-21 में ब्याज की यह देनदारी 5475 करोड़ रुपये तक पहुंच गई है। विकास के मोर्चे पर राज्य के सामने धन की कमी है।
राज्य पर इस तरह है कर्ज: (राशि: करोड़ रुपये)
वित्तीय वर्ष, ऋण राशि
2019-20, 65,982
2020-21, 73,478
2021-22, 85,486
जीएसटी: राज्य को 5000 करोड़ की राशि का संकट
राज्य में जीएसटी की प्रतिपूर्ति को केंद्र से मदद मिल रही है। प्रदेश की आमदनी में सबसे बड़ी हिस्सेदारी एक जुलाई, 2017 से पहले वैट की रही है। इसके बाद जीएसटी लागू होने से राज्य की कर आमदनी में हर साल होने वाली वृद्धि प्रभावित हुई है। केंद्र ने जीएसटी से मुआवजा की समय अवधि पांच वर्ष रखी है। यह अवधि जून, 2022 में खत्म हो जाएगी। जीएसटी मुआवजे के लिए केंद्र ने समय सीमा आगे नहीं बढ़ाई तो राज्य को चालू वित्तीय वर्ष में जीएसटी से होने वाली 13,492 करोड़ की कुल आमदनी अगले वित्तीय वर्ष में घटकर 10,194 करोड़ तक हो जाएगी। राज्य को करीब 5000 करोड़ के राजस्व संकट से जूझना होगा।
बजट का नहीं हो रहा सदुपयोग
नई सरकार के सामने सबसे बड़ी परेशानी सालाना बजट के शत-प्रतिशत उपयोग की है। राज्य बनने के बाद से अब तक बजट का पर्याप्त उपभोग नहीं हो पा रहा है। केंद्रपोषित योजनाओं, बाह्य सहायतित योजनाओं समेत बजट का काफी कम उपयोग हो पा रहा है।
निकाय-पंचायत चुनाव की कसौटी पर भी परखी जाएगी सरकार
प्रदेश में अगले वर्ष शहरी निकायों एवं सहकारिता के चुनाव होने हैं। बेहद स्थानीय स्तर पर होने वाले निकाय चुनाव में गली-मुहल्लों में पेयजल, स्वच्छता, कूड़ा निस्तारण, छोटी सड़कें, पुलिया, जल निकासी को नालियों जैसे आम जन से जुड़ी समस्याओं पर निकायों के बहाने सरकार के कामकाज और प्रबंधन को कसौटी पर कसा जाना है।