होलिका दहन के साथ परवान चढ़ा होली का उल्लास, रंगों से सराबोर लोग ढोल, डीजे और पारंपरिक गीतों पर झूमते नजर आए
होलिका दहन के साथ ही द्रोणनगरी में रंग के पर्व होली का उल्लास परवान चढ़ गया। देर रात तक रंगों से सराबोर लोग ढोल, डीजे और पारंपरिक गीतों पर झूमते नजर आए। उधर, इंटरनेट मीडिया भी होली के शुभकामना संदेशों से पटा रहा। आमजन ने एक-दूसरे को वीडियो, ऑडियो संदेश भेजकर शुभकामनाएं दी और सुरक्षित होली खेलने की अपील की।
होलिका दहन के लिए राजधानी में विभिन्न स्थानों पर होलिका स्थापित की गई थी। रविवार सुबह से लेकर शाम तक होलिका पूजन चलता रहा। श्रद्धालुओं ने होलिका की परिक्रमा करने के साथ ही वहां पकवान, अनाज चढ़ाकर पूजा की। रविवार सुबह विधि विधान से पूजा करने के बाद शाम छह बजकर 36 मिनट से रात आठ बजकर 56 मिनट तक शुभ मुहूर्त के अनुसार होलिका दहन होता रहा। इससे पहले सामाजिक संगठन एवं व्यक्तिगत तौर पर लोग घरों से लकड़ी लेकर होलिका के पास पहुंचे। आमजन ने होलिका के चारों और रंगोली बनाकर सजावट की। होलिका की परिक्रमा कर विशेष पूजन किया गया।
यहां हुआ होलिका दहन
रेसकोर्स, क्लेमेनटाउन, निरंजनपुर मंडी, तिलक रोड, इंदिरा नगर, पटेल नगर, कांवली रोड, सुभाष नगर, करनपुर, डीएल रोड चौक, घंटाघर, प्रिंस चौक, नेशविला रोड, हनुमान चौक, पीपल मंड, बल्लुपुर चौक, डाकरा, प्रेमनगर, सुभाष नगर, कारगी चौक, गणेश विहार, माता मंदिर रोड, सरस्वती विहार, बंजारावाला समेत अन्य जगहों पर।
बाजार में भी दिखी रौनक
होली पर राजधानी के बाजारों में भी रौनक दिखी। हालांकि, बाजार में कोरोना का असर भी देखने को मिला। पिछले सालों के मुकाबले बाजार में भीड़ जरूर कुछ कम थी। बता दें कि होली को देखते हुए जिला प्रशासन ने बाजार खोलने की विशेष अनुमति दी थी। बाजार में होली के मुख्य पकवान गुजिया आदि के अलावा अबीर-गुलाल, विभिन्न प्रकार के रंग, टोपी और पिचकारी की भी खूब खरीदारी हुई।
क्यों मनाई जाती है होली
आचार्य डॉ. सुशांत राज के अनुसार होलिका दहन शरद ऋतु की समाप्ति व वंसत के आगमन पर किया जाता है। इसके अलावा मान्यता है कि हिरण्यकश्यप ने अपने बेटे प्रह्लाद को मारने के लिए बहन होलिका को आदेश दिया था कि वह प्रह़्लाद को गोद में लेकर आग में बैठे। आग में बैठने पर होलिका तो जल गई, लेकिन ईश्वर की भक्ति में लीन प्रह्लाद बच गए। ईश्वर भक्त प्रह्लाद की याद में इस दिन होली जलाई जाती है।