कोरोना का एक सालः उत्तराखंड में ज्यादा घातक रहा कोरोना, मृत्यु दर राष्ट्रीय औसत से ज्यादा

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उत्तराखंड में कोरोना ज्यादा घातक रहा है। प्रदेश में कोरोना से मृत्यु दर राष्ट्रीय औसत से ज्यादा दर्ज की गई। हालांकि, अन्य राज्यों की तुलना में प्रदेश में सैंपल जांच के आधार पर संक्रमण की दर कम रही। कोविडकाल के एक साल के भीतर प्रदेश में 1704 कोरोना मरीजों की मौत हुई है।

पिछले साल देश में कोरोना वायरस की दस्तक के बाद उत्तराखंड भी अलर्ट हो गया था। विदेश यात्रा से लौटे इंदिरा गांधी वन अनुसंधान अकादमी के प्रशिक्षु अधिकारियों के साथ ही कोरोना उत्तराखंड पहुंचा। देश के कई राज्यों में संक्रमण तेजी से बढ़ रहा था। 22 मार्च से प्रदेश में लॉकडाउन लग गया था।

अप्रैल तक राज्य में संक्रमण की रफ्तार धीमी थी। इसके बाद दूसरे राज्यों से जमातियों और प्रवासियों के लौटने से प्रदेश में संक्रमण का ग्राफ तेजी से बढ़ा। संक्रमित मामलों के बढ़ने से राष्ट्रीय औसत की तुलना में प्रदेश की संक्रमण दर, सैंपलिंग, रिकवरी दर में उतार चढ़ावा आता रहा। दूसरे राज्यों से 2.50 लाख से अधिक प्रवासियों के आने से एक दिन में संक्रमितों की संख्या 1500 से अधिक पहुंच गई थी।

सैंपल जांच के आधार पर प्रदेश में कोरोना संक्रमण दर कम रही। जबकि मृत्यु दर राष्ट्रीय औसत से अधिक रही। एक ही दिन में सबसे अधिक 20 कोरोना मरीजों की मौत हुई थी। दूसरे राज्यों की तुलना में संक्रमण दर ज्यादा होती तो कोरोना भी घातक हो सकता था। कोरोना बुजुर्गों और पहले से किसी बीमारी से ग्रसित लोगों के लिए ज्यादा घातक साबित हुआ।

स्वास्थ्य विभाग ने मृत्यु दर बढ़ने का कारण इलाज के लिए देरी से अस्पताल पहुंचने और समय पर जांच न कराना माना था। इसके लिए सरकार ने आईसीएमआर की जारी संक्रमितों के इलाज का प्रोटोकॉल को भी सख्ती से लागू कराया। जिसके बाद कोरोना मरीजों की मौत के आंकड़ों में कमी दर्ज की गई। हालांकि, अभी तक प्रदेश की मृत्यु दर राष्ट्रीय औसत से अधिक है।

श्रेणी         –        उत्तराखंड       –          राष्ट्रीय औसत
मृत्यु दर      –        1.73 प्रतिशत       –       1.38 प्रतिशत
रिकवरी दर     –      96.08 प्रतिशत       –     96.12 प्रतिशत
संक्रमण दर      –     3.76 प्रतिशत      –       4.97 प्रतिशत
सैंपल जांच        –   26.10 लाख        –     23.24 करोड़
अप्रैल में हुई थी कोरोना मरीज की पहली मौत 
प्रदेश में कोरोना संक्रमण का पहला मामला 15 मार्च को देहरादून में मिला था। 25 अप्रैल तक प्रदेश में संक्रमितों की संख्या 48 पहुंच गई थी। तब तक एक भी कोरोना मरीज की मौत नहीं हुई थी, लेकिन 26 से 31 अप्रैल के बीच में एम्स ऋषिकेश में पहली कोरोना संक्रमित पाई गई महिला मरीज ने दम तोड़ा था। इसके बाद संक्रमण के साथ कोरोना मरीजों की मौत के मामले बढ़ते गए। 20 से 26 सितंबर तक एक सप्ताह में सबसे अधिक 88 मरीजों की मौत हुई।

केंद्र की गाइडलाइन के आधार पर बनी रणनीति 

प्रदेश में कोविड महामारी को रोकने के लिए केंद्र के दिशा-निर्देशों के आधार पर रणनीति बनाई गई। आईसीएमआर के मानकों के अनुसार प्रदेश में कोविड सैंपल जांच की सुविधाएं बढ़ाई गई। कांटेक्ट ट्रेसिंग कर सैंपल जांच कर संक्रमण को सामुदायिक फैलाव से रोका गया। केंद्र की ओर से आरटीपीसीआर जांच बढ़ाने के लिए लगातार दिशा-निर्देश मिलते रहे। जिस पर राज्य सरकार ने भी सैंपलिंग को प्रतिदिन 10 हजार तक पहुंचाया।

राष्ट्रीय औसत के समानांतर रही रिकवरी दर

उत्तराखंड में कोरोना संक्रमित मरीजों के ठीक होने की दर राष्ट्रीय औसत के समानांतर रही। दूसरे राज्यों से जमातियों और प्रवासियों के लौटने से प्रदेश में कोरोना संक्रमण का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा था। उस समय प्रदेश की रिकवरी दर राष्ट्रीय औसत से कम और ज्यादा होती रही, लेकिन रिकवरी दर में बड़ा अंतर नहीं मिला है। वर्तमान में प्रदेश की रिकवरी दर राष्ट्रीय स्तर के समान चल रही है।

प्रदेश में कोरोना संक्रमण और मृत्यु दर को रोकने के लिए केंद्र के दिशा-निर्देशों के अनुसार रणनीति बनाई गई है। सैंपल जांच बढ़ाने के साथ संक्रमण में कमी आई है। संक्रमितों के इलाज के लिए केंद्र के प्रोटोकॉल का सख्ती से लागू किया। पहले की तुलना में प्रदेश में कोरोना मृत्यु दर में कमी आई है। इस दर को राष्ट्रीय औसत से नीचे लाने के लिए प्रयास किया जा रहा है।
– डॉ. पंकज कुमार पांडेय, प्रभारी सचिव, स्वास्थ्य

प्रदेश में सबसे बड़ी चिंता कोरोना मृत्यु दर की थी। सरकार ने कोरोना संक्रमित मरीजों की मौत पर डेथ ऑडिट करने की बात कही थी लेकिन एक साल बाद ही कोरोना मरीजों की मौत की डेथ आडिट रिपोर्ट नहीं आई है। संक्रमितों की मौत के कारणों का पता लगाना जरूरी है।
– अनूप नौटियाल, अध्यक्ष सोशल डवलपमेंट फॉर कम्युनिटी फाउंडेशन

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