जनसंख्या नियंत्राण कानून लाना आज की सबसे बड़ी जरूरत बन गयी है

0

प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जनसंख्या नियंत्रण के मुद्दे पर थोड़ी सजगत दिखाई थी और नसबंदी अभियान शुरू किया था लेकिन संजय गांधी के अति उत्साह और कुछ ज्यादतियों के कारण वह हाशिए में चला गया। आपातकाल ने उसे और भी बदनाम कर दिया।
यदि भारत में जनसंख्या की रफ्तार जो आजकल है, वह बनी रही तो कुछ ही वर्षों में वह चीन को मात कर देगा। इस समय चीन से सिर्फ तीन-चार करोड़ लोग ही हमारे यहां कम हैं। भारत की आबादी इस वक्त एक अरब 40 करोड़ के आस-पास है। चीन ने यदि कई वर्षों तक हर परिवार पर एक बच्चे का प्रतिबंध नहीं लगाया होता तो आज चीन की आबादी शायद दो अरब तक पहुंच जाती। अब से 60-70 साल पहले हर चीनी परिवार में प्रायः पांच-छह बच्चे हुआ करते थे। भारत से भी ज्यादा दरिद्रता चीन में थी लेकिन चीन ने आबादी की बढ़त पर सख्ती की, उसके कारण उसकी अर्थ व्यवस्था में भी काफी सुधार हुआ। लेकिन आश्चर्य है कि भारत की सरकारें इस मुद्दे पर खर्राटे खींच रही हैं।
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस मुद्दे पर थोड़ी सजगत दिखाई थी और नसबंदी अभियान शुरू किया था लेकिन संजय गांधी के अति उत्साह और कुछ ज्यादतियों के कारण वह हाशिए में चला गया। आपातकाल ने उसे और भी बदनाम कर दिया। इस वक्त दुनिया में जनसंख्या की बाढ़ जिन देशों में सबसे ज्यादा है, उनमें भारत अग्रणी है। यह एकदम सही समय है, जबकि हम आबादी को बढ़ने से रोकें। यदि भाजपा सरकार इस दिशा में ठोस कदम उठाएगी तो उसका विरोध करने की हिम्मत किसी में नहीं होगी।
तो वह क्या-क्या करे ? पहला, जब वह लोगों को कोरोना का टीका लगाए तो मुफ्त में नसबंदी का भी ऐलान करे। वह अनिवार्य न हो। हां, कुछ प्रोत्साहन दिए जा सकते हैं। जिनके एक या दो बच्चे हों, वे स्वेच्छा से टीका लगवाएं। दूसरा, ‘दो हम और हमारे दो’ का नारा घर-घर में गुंजा दिया जाए। इसे कानूनी रूप भी दिया जाए। जो दो से ज्यादा बच्चे पैदा करें, उन्हें सरकारी नौकरियों, संसद और विधानसभा की उम्मीदवारी और कई शासकीय सुविधाओं से वंचित किया जाए। मेरा यह सुझाव कठोर और निर्दयतापूर्ण तो लगता है लेकिन इससे देश का इतना भला होगा कि जो प्रधानमंत्री इसे लागू करेगा, उसका दशकों तक भारत की जनता आभार मानेगी।
इस नियम को लागू करने का विरोध वे जातिवादी और सांप्रदायिक लोग जरूर करेंगे, जो योग्यताकृबल और चरित्र-बल की बजाय संख्या-बल के आधार पर ही अपनी राजनीति चलाते हैं लेकिन व्यापक जन-समर्थन के आगे उनकी बोलती बंद हो जाएगी। तीसरा, भारत सरकार यह लक्ष्य बनाए कि दक्षिण और मध्य एशिया के 17 देशों में महासंघ खड़ा करके अगले पांच वर्षों में 10 करोड़ भारतीयों को वहां वह रोजगार दिलवाए। देखिए, फिर भारत महासंपन्न और सबल बनता है या नहीं ?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may have missed